काव्य स्पर्धा क्रमांक २
दिनांक २२/०३/२०२०
विषय : अदरक
जिंजीबरेसी कुल को आय
आयको अदरक येको नांव।
माती को अंदर पालन होसे
अदरक वंश को विस्तार गा।।
सबको रांधन खोलिमा मिलजासे
लसुनसंग संग, मंग पिसी जासे।
भाजी को जब तड़का लगसे
बढ़ाय देसे भाजी को स्वाद गा।।
बडी गुणकारी, तीक्ष्ण उष्णविर्य
अग्नि प्रदीपक , कटुस रस बड़ो।
लगाय लेव तुमि अदरक को रस
हरदकपारीमा देसे बड़ो आराम गा।।
सर्दी, खासी अना पोटदुखी मा
बडी तकलीफ नाक अन पेटमा।
लेयलेव शहद संग अदरक को रस
दूर पराए सर्दी, खासी जाओ भुल गा।।
कैंसर की कोशिकाको नास करसे
दमा , वात,पाचन मा से मददगार ।
तुरसी अदरक शहेद को रस एकमा
पेट को सफाईमा नहीं धर कोनी हात गा।।
सुंदर कांति साती मुख पर लगाओ
तुरसी, अदरक, शहेद को रस ला।
गोरो मुखड़ा चमक उठे साजरो
तेजोमई होये, तजेली रहे काया गा।।
वारायकर बनायलेव येकी सुठ
बढायलेव चाय को मस्त स्वाद ।।
अदरक सरिखो बहुगुणी बनो
सिक लेव अदरक का गुण गा।।
- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
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