हंगाम की याद तिज करदेसे।
कास्तकार कामला लगजासे।।
नवं सालकी पेरनी करसे।
खेतिमा खात डालील फेकसे।।
मोसमी वारा पाणी आणसेती।
समुद्रक वाफका ढग बनसेती।।
बरसात की पशु-पक्षी बाट देखसेती।
रवहन साठी आपलो बसेरा करसेती।।
करसा भरो जपो आपली संक्रती।
सेवईना रस रोटि पीवो ठंडो पाणी।।
निसर्ग से देव समजो या बात।
टाईमपर पाणी या पेरनीकी घात।।
वाय सी चौधरी
गोंदिया
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