Tuesday, April 14, 2020

मायबाप सरकार


सब किसान भय गया लम्बा
पानी को देखकर अचंभा,
दिवारी भय गई तबी काही
पानी सोड नही भाऊ पिछा.

हलको धान की भय गई माती
किसानला परेशानीसे पैसा साती,
दिवारी बी रही बहुत थंडी थंडी
टुरू पोटू ला फटाका मिल्या, ना चिंधी.

 सरकार करे का आमरसाठी काही
नुकसान भरपाई भेटे का भाई,
याच चिंता मनमा लं जाय नही
टुरी को बिह्या चिंता बी बढ गई.

सरकार तं आता आपलच मासे मस्त
किसान मेहनत करस्यार भय गया पस्त,
कोनका आमदार केतरा येकमा सेत नेता व्यस्त.
कौन मंत्री,कौन मुख्यमंत्री येतरीच चर्चा से फक्त.
 
किसानी आता भय गई घाटो को सौदा
करेच नही पाहिजे असो लगसे अवंदा.
नागपूर मुंबई मा देखे पायजे काम धंदा
फसल नही होनो लं जी होय जासे शर्मिंदा.

           रचना- चिरंजीव बिसेन
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.

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