हिंदु संस्कृति यह उत्सवप्रिय संस्कृति है.इसमें अनेक प्रकार के उत्सव और त्योहार मनाये जाते है.पोवार समाज मी हिंदू धर्म को माननेवाला समाज है.इसलिए वह भी हिंदू धर्म के सभी त्योहार मनाता है.लेकिन अन्य जाति पोवार समाज के त्योहार को मनाने के तरीकों में कुछ फर्क है।और सभी के साथ त्योहार मनाने के बावजूद पोवार समाज अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रहा है.
पोवार समाज द्वारा मनाये जानेवाले मुख्य त्योहार निम्न लिखित है।साथ ही कुछ त्योहारो में नवविवाहित जोडे से संबंधित जो नेंग (दस्तुर) होते हैं वह भी संक्षिप्त में बताने का प्रयास किया गया है।
१)मकर सक्रांत- इसे तिल सक्रांत भी कहते हैं।इस दिन सुबह स्नान करके सूर्य की पूजा की जाती है।तथा तिल और गुड़ का नैवैद्य चढ़ाकर "तिल गुड़ घ्या,गोड बोला" कहते हुए तिल और गुड़ का प्रसाद बाटा जाता है।तिल और मुरमुरे के लड्डू तथा पोहे का चिवडा नास्ते के लिए बनाया जाता है।कई लोग सक्रांत नहाने तीर्थस्थल, नदी या यात्रा स्थल पर भी जाते हैं।
महिलाओंका यह खास त्योहार बन गया है।संक्रांति से लेकर अगले ८-१० दिन तक वे वान बांटने और लेने का कार्य करती है।नवविवाहिता भी उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है।
२)महाशिवरात्री- महाशिवरात्री यह शिव भगवान के आराधना का त्योहार है।इस दिन मंदिरों में शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है।महिलायें इस दिन उपवास भी रखती है।तथा साबुदाना की खीर और उबले या गुड़ में पकाये सकरकंद का नास्ता किया जाता है।अनेक जगह भजन किर्तन का भी आयोजन किया जाता है।शिव आराधना में नवविवाहित जोड़े भी हिस्सा लेते हैं।
३) होली- होली पोवार समाज का एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है।होली के दिन करंजी,पापडी,बडे़,सुकुड़े आदि पकवान बनाये जाते हैं।खासकर करंजी इस त्योहार का मुख्य पकवान है।
होली के दिन रात को होली की पूजा करके उसे जलाया जाता है।पूजा में घरमे बनाये गये पकवान, गाठीमाला तथा नारीयल होली को चढाये जाते हैं।
नवविवाहित लड़की तथा दामाद को इस त्योहार में घर बुलाया जाता है ,उनकी मेहमानी की जाती है तथा नये कपड़े भी लिये जाते हैं।
होली का दुसरा दिन धुलीवंदन एक दूसरे को रंग गुलाल लगाके मनाया जाता है।बच्चे इस दिन खूब आनंद मनाते हैं।पिचकारी भर भरकर एक दूसरे पर रंग डालते हैं।
४)हनुमान जयंती- हनुमान जयंती के दिन शक्ती के प्रतिक हनुमानजी की पुजा की जाती है।इस दिन महिलायें और बच्चे मोहल्ले में जोगवा(भिक्षा)मांगकर लाते हैं। उसको पिसकर रोटीयां बनाई जाती है तथा रोटीयोंमें गुड मिलाया जाता है और उसे खाया जाता है।इसे रोट-मल्लेदा कहते हैं।लेकिन यह प्रथा धीरे-धीरे बंद हो रही है।
५)अक्षय तृतिया(तीज)- तीज यह पोवार समाज का महत्त्वपूर्ण त्योहार है।इस दिन पकवानों में सेवई, आम का पन्हा, सुवारी,पानबडे की सब्जी,कढी आदि प्रमुख होते हैं।इस दिन पूर्वजो को नैवैदय(बिरानी) दिया जाता है तथा कलसा भरा जाता है।
पहला कलसा हो तो रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों को भी निमंत्रण दिया जाता है।
६)अखाडी(गुरू पौर्णिमा)- यह भी पोवार समाज को खास त्योहार है।पहले बचपन में विवाह होने के कारण गवना साथ में नहीं होता था।ऐसे में नई बहू को अखाडी के लिए लाने का दस्तूर था।साल भर भले ही बहू मायके में रहती थी लेकिन अखाडी के पहले उसे अखाडी के दस्तूर के लिए ससुराल में लाया जाता था।शायद प-हा लगाने में मदद करने के लिये लाया जाता हो।
अखाडी के पकवानों में कुसुम प्रमुख होता था।इसके अलावा बडे़,सुवारी आदि पकवान बनाते जाते थे।अखाडी के दिन शाम को पोवार समाज की महिलायें आरती सजाकर तथा उसमें पकवान रखकर मातामाय के पास पूजा करने जाती थी। नई बहूओं कोें खासकर लेजाया जाता था शायद अन्य महिलाओं से परिचय कराने के लिए।साथ में ले ग्रे पकवान आयकरी अर्थात नाई,धोबी,कोतवाल को दिये
जाते थे।
७) जीवती- जीवती के दिन सुवारी और पानबडे की सब्जी बनाई जाती है।तथा पुरखों को नैवैद्य (कागुर) दिया जाता है।इस दिन खेती के काम बंद रखे जाते हैं तथा बैलो के कांधों को हल्दी लगाई जाती है।
इस दिन सुबह सुबह ढिमर आकर जाल सिर पर रखता है और उसे धान दिये जाते हैं।लोहार दरवाजे को खिला ठोकता है तथा सोनार दरवाजे पर जीवती लगाता है।लोहार और सोनार को शिधा( चावल,दाल,भट्टे,आलू,मिर्ची,हल्दी,नमक) दिया जाता था।
८) राखी(रक्षाबंधन)- रक्षाबंधन मूल रूप से राजपूत और ब्राम्हणो तथा लोधीयों का त्योहार होना चाहिये।क्योंकि वे इसे धूमधाम से मनाते हैं।बुझली बोते हैं और उसे विसर्जन करते हैं।
पोवार समाज का रक्षाबंधन से संबंध बहन द्वारा भाई को राखी बांधने तक सिमित लगता है।लेकिन अब यह त्योहार भी पकवान(पाहुणचार) बनाकर मनाना सुरू हो गया है।
९)कान्हूबा- भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव लगभग सभी पोवारो के यहां मनाया जाता है।कृष्ण की मुर्ति की स्थापना करके उसकी रात में पुजा की जाती है।तथा दुसरे दिन शाम को सामुहिक रूप से उसका विसर्जन किया जाता है।
कान्हूबा के लिए लायी चने की प्रसाद बनाई जाती है।तथा पानबडा,तेलबडा,सुवारी का उसका पाहुणचार किया जाता है।
१०)पोला- पोवार समाज कृषीप्रधान है तथा पोला उसको खेती में मदत करनेवाले बैलो का त्योहार है इसलिए उसे वे धुमधाम से मनाते हैं।इस दिन बैलों को धोकर उनकी पूजा की जाती है।इस दिन उनसे कोई काम नहीं लिया जाता।शाम को उनको गांव के आखरपर या मैदान में तोरण में ले जाया जाता है।तथा गांव के दो चार घरों में पकवान खाने घुमाया जाता है तथा घरमालक से बोझारा लिया जाता है।
पोले के दिन आयकरी और छोटे बच्चों को भी बोझारा दिया जाता है।पोले के एक दिन पहले मोहबईल और एक दिन बाद मोरबोद का त्योहार मनाया जाता है।
पोले के दिन पकवानो में करंजी,पापडी प्रमुख होते हैं।इनके अलावा बड़े और कढी भी बनाई जाती है।
१०)काजलतीज- यह खासकर महिलाओं का त्योहार है।इस दिन महिलायें भगवान शंकर का उपवास करती है।यह उपवास सबसे कठिन माना जाता है।क्योंकि यह एक दिन एक रात निराहार करके किया जाता है।रात में भगवान शंकर की पूजा और आराधना की जाती है।
कुमारी लड़कियां अच्छे पति के प्राप्ति के लिए यह व्रत करती है साथ में विवाहित महिलाएं भी करती है।इसे हरतालिका व्रत भी कहते हैं।
११)दसरा- दसरा पोवार समाज का महत्त्वपूर्ण त्योहार है।राम की रावण पर विजय तथा दुर्गा की महिषासुर पर विजय के यादगार के रूप में यह मनाया जाता है।
इस दिन पोवार समाज के यहां मयरी और कोचई के पत्तों की बड़ी बनाई जाती है।खाने के पहले शाम को मयरी और बड़ी की पूजा की जाती है साथ ही खेती के अवतारों और घरेलू अवतारों की पूजा की जाती है।
इस दिन शमी(आपटा)के पत्ते सोना समझकर एक दूसरे को दिये जाते हैं।
१२)दिवाली- दिवाली यह हिंदुओंका उसी प्रकार पोवार समाज का भी सबसे बड़ा त्योहार है।यह त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है।धनत्रयोदशी,नरक चतुर्दशी,लक्ष्मीपूजन,बलीप्रतिपदा, भाईदूज।
धनत्रयोदशी भगवान धनवंतरी के जयंती के रूप में मनाया जाता है।नरक चतुर्दशी भगवान कृष्ण के नरकासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है।
लक्ष्मीपूजन यह दिवाली का सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है।इस दिन हर घर में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।घर को रांगोली डालकर सजाया जाता है।पूरे घर में दिये जलाकर रोशनाई की जाती है।और खूब फटाके फोड़े जाते हैं।
इस दिन बनाये जानेवाले पकवानों में खीर प्रमुख होती है।इसके अलावा मीठे पकवान जैसे-बूंदी,जलेबी,बर्फी आदि बनाते जाते हैं।
दिवाली का चौथा दिन बलीप्रतिपदा है।इस दिन बलीराजा तथा गोवर्धन पूजा की जाती है।गांव का पूरा गोधन आखरपर लाकर गाय खेलाई जाती है।गावो में मंडई की सुरवात इसी दिन से होती है।
पोवार समाज में इस दिन सुरण की सब्जी और लसूण के पत्ते के चिल्हे(अकस्या) बनाते जाते हैं।
दिवाली त्योहार का आखरी दिन भाईदूज है।इस दिन बहन भाई की आरती उतारती है।तथा उसके लंबी उम्र की कामना करती है भाई भी उसकी रक्षा का आश्वासन देता है।
१३)पांड-- पोवारी का एक और त्योहार है जिसे पांड कहते हैं। यह मार्गशिर्ष पौर्णिमा को मनाया जाता है।
इस त्योहार का मुख्य पकवान गुंजा(गुंजे)होता है।नयी फसल निकलने के बाद का यह पहला त्योहार होता है।नये चावल का आटा,गुड और तिल्ली से बना यह व्यंजन लाजवाब होता है।
इस त्योहार तक धान कटाई पूरी हो जाती है।बहूयें इस त्योहार के बाद ससुराल से मायके जाती है।
इस प्रकार पोवार समाज में मुख्यरूप से उपरोक्त त्योहार मनाते जाते हैं।इनके अलावा रामनवमी,गणेश उत्सव,नवरात्री,तुलसी विवाह आदि त्योहार भी मनाये जाते हैं।
लेखक - चिरंजीव बिसेन
गोंदिया(टेमनी)
दि.१४/०५/२०२०
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