ठंडी की वा रात बड़ी हुडहुड़ाई
सुरकुडा घरकन मोरो मंग धाई।
बचनसाती मी सगडी जवर आईं
तब कहीं गरमीमा थोड़ी थबक गई।।
कसीबसी रात बिती कथडी पंघरकर
झुरमुरायकर ठंडी देखं ढूक ढुककर।
पायटला कोंबडा कवं उठोआबं लवकर
सजीव सृष्टि जागी आबं चडपडायकर।।
रंग रंगका फुल फूल्या सुगंध नानापरी
धरती लग जसी सजीसे नवीन नवरी।
सोनो बिखरेव धरतीपर भई वा पिवरी
शालू ओकों भरजरी कसीदाकारी हिवरी।।
पहाटला देखसे रवी की सवारी उगीमुगी
देखकर रविला ओद भई जरा रुसमुसी।
गुंडीस सोटा दुपटा मनको मनमा उदासी
धीरे धीरे ओद भी गई दूर बादर को देसी।।
जाग्या पशुपक्षी तसी आमला से हुरहूर
पोवारी को प्रचार प्रसार करबीन दूरदूर
नोको करो आता आलस नोको कुरकुर
पोवारी आमरी जगे मिलावो सुरमा सूर
✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
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