पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित काव्य स्पर्धा क्र. 72
नदबाई चली ठुमकत
नदी बहे वाकळी तिकळी
चल बिचल से ओकी धार
कभी दुसरं नदी मा मिल
कभी सात समुंदर पार
नाव अलगलग नदीका
सब अलगलग ठिकाण
कही बळी नुकसान देही
कंही ठरज़ासे वरदान
कही कसेती गंगा यमुना
कही सरस्वती, गोदावरी
तापी, ब्रम्हपुत्रा, वैनगंगा
कृष्णा,सिंधू,नर्मदा, कावेरी
सुखी नदी,आटज़ासे पानी
बाट बरसात की देखसे
पानी पळेव, आएव पुर
भयीं खुशी मोठी इटकासे
शांत मधुर स्वर गुंज़से
जब वरदायी ठरज़ासे
कभी विकराल रुप धर
मंग सत्यानाश कर देसे
नदी आमरी जिवन दायी
ओका केता सेती उपकार
साफ सुतरी ठेवौ नदीला
भेटे पर्यावरण , आधार.
डी पी राहांगडाले
गोंदिया
नदबाई चली ठुमकत
हिमालय बेटी नखरेल
नदबाई चली ठुमकत
साजनला भेटणकी आस
नार अलबेली मटकत
बाल्यावस्था लहानशी धार
बाट मिलसे लेसे आकार
जसी नहान टुरी चंचल
नहीं मनमा कोणी विकार
मोठी भई संथ ओकी चाल
कर संभाळ दुही किनार
जसी टूरी भईसे संज्ञान
लाज ओकी जसो परिवार
रमकत चली पतीद्वार
देख पलट पिताको घर
मिल गई सागरमा नार
माहेरकी आस बाई धर
कसी जाऊ पिताजीको घर
आसू बोवती याद करके
भई विलीन मी संसारमा
जाऊ प्रेमका मोती धरके
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
विषय -नदी चली ठुमकत
नदी माय
उचा उचा आती रे पहाड
नदिबाई को उगम घर |
कुद-कुदकर आव नद
शांतरूप बहताना धर ||
शांत स्वभावमा बहकर
बरसाव मायाका सुमन |
विकराल रूप धरकर
नष्ट करसे जनजीवन ||
आय नदबाई माय मोरी
बुझावसे सबकी तहान |
धन -धान्य पिकावनसाठी
किसानला होसे वरदान ||
तीन नदिको होय संगम
कह त्रिवेणी संगम जग |
देखकर कवत मानव
नदी चली ठुमकत मग ||
नदी कहुका सरिता कहू
अविरत बहत रवसे |
रुक नही कही नदीबाई
काम बहनो आय कवसे ||
जल होतोरे वोको निर्मल
केर -कचरा नदिमा टाक |
मानवनं करीस दूषित
अन् भयेव जीवन खाक ||
सौ.उषाताई रहांगडाले
नंदबाई चली ठुमकत/नदी चली ठुमकत
आस
ठुमकत ठुमकत चली,
नदीपर भरनला पाणी
साडी़ को पदर तालपर
नंदबाई की याच कहानी।।१।।
चाल देखोत जशी मोरनी
छुम छुम धुन पायल की
गीत मधुर नाद धरनी
अशी सुंदर कथा नदीकी।।२।।
नागमोडी बहसे बनमा
दुधवानी रम्य हे झरना
खड़ खड़ यो नाद कानमा
गुंज गीत ध्वनी या हवामा।।३।।
वन पहाड़ या चिरदेसे
आस मिलनकी वा धरके
इच्छा सफल मनकी होसे
समुद्रमा जासे वा मिलके।।४।।
नंदबाई या नदी सारखी
भाव अलग नजर कही
जासे कुंभ धरके सकारी
लगसे दर्याकी प्रिया सही।।५।।
""जय राजा भोज, जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया
नंदबाई
उच्चो उच्चो पहाड, डोंगर
चोवसेती हिरवा हिरवा
नंदबाई को जनम स्थान
भयो पुंजापाती को कारवा ||
खळखळ बवं जलधार
बाट नागमोडी वळणकी
आया केतातरी शीला टीला
पर आस ठेव कर्तव्यकी ||
गाठ बांधीसेस हिरदामा
पाठ संयमको जगनकी
ऋतु ऋतु को बदलसंग
कर कोशिश सुख देनकी ||
वोको मंजुळ मंजुर नांद
जसो मुरलीका सातस्वर
फुलं खेतबाडी, किनारबी
देय आसराको खुलो द्वार ||
प्रदुषीत भयी वोकी काया
मुन केती भयीसे नाराज
दुखदर्द सयकन भयी
सागरीय सौभाग्यको साज ||
वंदना कटरे "राम-कमल "
विषयःनदी बाई चली ठुमकत
(दशाक्षरी काव्य)
नदी बाई चली ठुमकत,
सबको तृष्णारा बुझावत
पहाड कपारीन मालका
बडो सुंदर नृत्य करत
शुद्ध, पवित्र, जलमय से
पावन से वोकी जलधारा
रत्नाकरला मिलन साठी
थंडी करदे से तप्त धरा
पांदन पांदी,खाळखुबळ
रस्ता सुलभ पार करसे
धरतीपर हर प्राणीला
नदीमाय जागृत ठेवसे
ना भेदभाव,ना अहंभाव
सबकी ममतामय माता
ऋषी,मुनी सदा गावसेत
पावन नदीमाय की गाथा
नागीन जसी चाल चलसे
हरघडी संघर्ष करसे
कठीण परीश्रम करके
सदा मार्गक्रमन करसे
सौ.वर्षा पटले रहांंगडाले
गोंदिया
नदबाई चली ठुमकत
(दशाक्षरी काव्य)
निकलसे पहाड परल
मिलनला जासे सागरला,
ठुमकत वाकडी तिकडी
समावत पोटमा पाणीला.
कई प्रदेश,कई शहर गाव
मंघ सोडत बढत जासे,
कई ताल, कई सरोवर
आपलोमा मिलावत जासे.
उन्हारोमा तट क् अंदर
रह्य जासे सिमटी सिमटी,
बारीशमा लेसे रौद्र रूप
तट सोडकर उल्टी पुल्टी.
भारतमा माता को रूपमा
जासे पुजेव नदीइनला,
सबदून पवित्र समज्यो
जासे जान्हवी भागिरथीला.
. . . . . . . . . . . चिरंजीव बिसेन
. . . . . . . . . . . . . . . . गोंदिया
नदी चली ठमकत
पर्वत पुत्री
चटक मटक रुप से
नागमोडी चाल
निर्मल स्वरुप से
शुभ्र वस्त्र
नागिण की चाल रे
बाजू किनारा
करा भूरा बाल रे
काटा गोटा
लक्ष्य तोरो अभय से
माती को सिना चिरे
तू हमदम अजय से
विशाल रुपकी
सब साईक गुण से
सागर महासागर
बननको जुनून से
ठूमकत ठुमकत
निराली तोरी अदा से
तू जीवनदायी
तोरो नाव सदा से
शेषराव वासुदेव येळेकर
मु. सिंदीपार
दि.२५/७/२१
नदी चली ठुमकत
पहाड़की सरिता बेटी
चली ठुमकत ठुमकत
काटा कचरा संग धरत
निरंतर चली बहत ||१||
शांत रूप जीवनदायी
रौद्र रूप महाविनाशी
सतत चलनकी सिख
देसे नदबाई जशी||२||
पूजनीय नदी मैया
गंगाजल अति पावन
निर्मल शुभ्र पानी
सबला देसे जीवन||३||
अतिवृष्टिको परिणाम
आवसे नदीला पूर
विध्वंसकारी रुप येव
गावसे विनाशको सुर||४||
कठिन रस्ता पार करत
ठुमकत चली नदिबाई
भूली सुध बुध आपली
लगी पिया मिलनकी घाई||५||
स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे
नंदबाई चली ठुमकत/नदी चली ठुमकत
अगर मोरो बस मा रवतो
नदी ला उठायके घरं आणतो
आपलो घर को सामने ठेयके
रोज ओकोमा आंघोळ करतो
नदी आमरी से लहान सुली
वाकडी तिकडी धार
उन्हालो मा टोंगराभर पाणी
कर लेसेज आम्ही पार
जब जब शहर अमीर भय गया
नदी भयि गरीब
मशरीं मेंडका तहान गया
फूट गया उनका नशीब
जसो आयेव आषाढ महिना
नदीला आयेव पूर
मन मर्जी ल चलत जासे
बहुत दूर बहुत दूर
नदी सागर ला भेटसे
कभी नही आवं बाहेर
मुनच कसेत बुळगा बाळगा
नदीला नाहाय माहेर
देवराज भुरकन पारधी
मो. ९५४५०६८०९०
मु. वडद
ता. २५-०७-२०२१
विषय: नदीबाई चली ठुमकत
शिर्षक: सहनशक्तीकी महतारी
आळीमोळी चलंसे मस्तीमा
जसी सडक, सरपघायी
जसो बोव्हतो ठंडो बरफ
पानी आसल जीवनदायी ||१||
निसर्गको रूपलक सजी
चली मटकात मटकात
नदीबाई चली ठुमकत
भटकत कहीं इटकात ||२||
धबधबा बनके पड़ंसे
तबं नदी जासे बोंबलत
कहीं चट्टान कहीं पुलिया
हर जागा चली सम्हलत ||३||
रूप उगमको बालपना
मंग धरं रूप जवानीको
व्यवहार लेवान देवान
सत्य रूप माय भवानीको ||४||
बुढापाको शांत रूप मुख
होसे संगम अनंतसीन
नोन मिलावन नोनलाच
भई समुद्रमा ब्रम्हलीन ||५||
नदी निकली शुन्यमालक
सहनशक्तीकी महतारी
सब रंगला एक करके
जीवनका नव रसधारी ||६||
डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगाव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
नदी
हे प्रेत वाहिनी गंगा
एक संग सब प्रेत बोली नदी संग
सबकूछ बढिया - बढिया!
समाय ले आम्हलाअपली निर्जल
धारामा बहता - बहता
कोणी नाय रामराज्य मा आम्हरो
हे प्रेत - वाहिनी गंगा!
खतम भई सब शमशान भूमी
खतम जात - पात की दुरी
थक गया सबका का खांदा
तू ही आम्हरो सहारा
कर दे माफ!आम्हारा पाप,लोभ,
घमंड, राग, गुस्सां
हे प्रेत- वाहिनी गंगा !
आम्हरा पाप धोवता - धोवता
भय गई तू मैली - मैली
दिव्य,भव्य,पावन, निर्मल,सुंदरता
कम करेनेवला आम्ही दोषी
कर दे आम्हारा गुन्हा माफ
हे प्रेत - वाहिनी गंगा!
कोरोना काल बनकर आयेव
मानव साठी,तूभीअच्छुती नही
काहे सरकार सोयी - सोयी
दफण कर ले आम्हला
हे प्रेत वाहिनी - गंगा!
चंद्रकुमार शरणागत
Hero Moto corp Gurgaon
(हिरो होंडा)
नदीबाई ठुमकत चली
हिमालय सें उगमस्थान
दरीखोरी बनबन खेली
जीवनदायिनी मोक्षदाती
नदीबाई ठुमकत चली
जनहित को भाव धरके
भूमीपर भगीरथी आई
स्वर्ग धरतीको बिचमाच
शिवजीको जटामा समाई
कही उथळ ना कही खोल
कभी बोहसे या कलकल
देखावंसे रूप भयानक
कभी निळसर संथ जल
नागमोडी सुंदर वळण
जशी चंचल नवती नार
चली सागर संग मिलन
करकन सोलह सिंगार
तृप्त करसे सबकी आत्मा
जलजीव की आश्रयदाता
सीचकर पानी लक खेती
खुशहाली देसें नदीमाता
शारदा चौधरी
भंडारा
नदी
उत्तराखंड को पहाडमालक
गंगा उगम भई ।
भगीरथ को तपश्चर्या लक
गंगोत्री लक आई ।
बहत-बहत गंगा माई
वाकडी तीकडी भई ।
हरिद्वार ला पोहचकर
गंगा तीर्थक्षेत्र बन गई ।
गंगा आई उफानपर
समले सभल नई ।
शंकरजी को जटामा
गंगा समाय गई ।
जंहा-जंहा गंगा गई
भक्त वंहा-वंहा गया ।
शंकर की स्थापना करखन
भक्त पावन भया ।
गंगा मायको झुर-झुर पाणी
आसल झरा वानी ।
गोड लग असो काही ।
मिठो अमृत वानी ।
सौ, ऊषा बाई रमेशजी पटले नागपूर ।
नदी बाई चली ठुमकत
शंकरजी को जठामालका
भयी कसेत मोरो उगम
पहाड ,पवॅत ,डोंगरमा
तर्रा,बोडी,नालाको संगम......
नदी को तिरी भुजंग वास
खडखड-ठुमकत नदी
नदीबाई सरसर चली
वाकडी-तिकडी दूर वदी/खाई........
तिन नदी को होसे उगम
तीर्थ मंडलामा हो पावन
त्रिवेणी गंगामा को संगम
बुझावसे तृष्णाकी तहान.....
नदि किनारी कृष्ण- बजाव
बासरी लका मन मोहित
राधाचली आव गोपीसंग
कृष्ण-राधासंगमा प्रित......
माहेर मोरो आय वळद
बोदलबोडी आय सासर
बिचमा भेटसे वाघनदी
नावबसू,कहाकी खासर....
सौ:-ओमलता परिहार/पटले
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