शेरों जैसे अड़ते थे,
नहीं कभी झुकते थे।
किस्से राजा भोज के मैं
सबको सुनाती हूँ ।
भागीरथ जैसा तप,
शिवजी का किया जप।
इतिहास के पन्नों पे,
उनसे मिलाती हूँ ।
दान दया और धर्म,
जीवन का यही कर्म।
सिन्धुराज के सपूत की
बात मैं बताती हूँ ।
सौ सौ को अकेले मारे,
संकट में भी ना हारे।
मातृ भूमि पे जो मिटे,
बलि बलि जाती हूँ ।
राजा थे महाप्रतापी,
दुश्मनों की फौज नापी।
अलौकिक ज्ञानपुंज,
झाँकी मैं सजाती हूँ ।
ऐसे कवि ज्ञानी दानी,
ओज की रही है वाणी।
चक्रवर्ती राजा के मैं,
गीत रोज गाती हूँ ।
अमर है परचम,
चारों दिशि चमचम।
पंवार कुल के लाल,
शीश मैं नवाती हूँ ।
कालजयी शूरवीर,
धीर भी रहे गंभीर।
वीर गाथाओं से सोये,
राष्ट्र को जगाती हूँ ।
कवयीत्री - अलका चौधरी
अग्निवंशीय पोवार(पँवार) क्षत्रिय समाज के इतिहास, संस्कृति और पोवारी बोली के साहित्य के प्रकाशन हेतु यह ब्लॉग बनाया गया है। पोवारी संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन इसका मुख्य उद्देश्य है। जय माँ गढ़कालिका जय पोवार(पँवार), जय पोवारी
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