देखता देखता जमानो बहुत बदल गयो,
सब नवो भय गयोव,पुरानो नही रहेव.।धृ।
गाव का रस्ता भी भय गया सिमेंटका,
पहले वानी धुल वाली गल्ली नही रही,
बाईक,कार,टेक्टर,मॅटाडोर आय गया,
पहले का रेहका,गाडा,बंडी नही रही।१।
धान क् बाद मा धान की च् फसल लेसेत,
गहू,चना,लाखोरी लगावनो बंद भय गयेव,
ना हुड्डा पार्टी ना उबडहांडी आता रही,
केवल धान ही धान खेत मा रहय गयेव।२।
लेटर,चिठ्ठी की खबरबात बंद भय गयी,
मोबाईल,व्हाट्स अप पर बात भय गयी,
पडोसी बी आता नही जात एक मेक क् घर,
खतम पहले की मुलाकात भय भयी।३।
बाप बी बाबूजी क् जागा पापा बन गयेव,
माता बी माय क् जागा मम्मी बन गयी,
जिंस टी शर्ट मा आता फिर से पापा,
मम्मी बी सलवार कुर्ती की शौकीन भय गयी।४।
ना दादा की धोती रही ना टोपी रही,
दादी की पातल ना वायल बदल गयी,
नाना बी आता पेंट शर्ट मा रव्हसे,
नानी बी साड़ी मा सजी धजी से ।५।
रचना- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
दि.०४/०२/२०२०
No comments:
Post a Comment