Tuesday, April 14, 2020

घर


महल,हवेली,कोठी,बंगला,वाडा, मकान,
ये सब एकच चीज आती,घर वोको नाव.

महल,कोठी,बंगला ये सब प्रतिष्ठा दर्शक नाव,
पर सबसे चांगलो से,घर शब्द को भाव.

महल, हवेली,मकान, ईटा,मिट्टी, गारा ल् बन सेती,
पर घर बनावन ला प्यार, मोहब्बत
पाहिजे जी.

जहाॅ आपस मा प्यार,भाईचारा रव्हसे वू घर मंदीर बने जासे,
नहीं त् मोठी हवेली बी भूत बंगला
बनके रह् जासे.

म्हणून त् आफून बंगला,कोठी, मकान ल् आवुसू जासू नही कव्हज्,
महल ल् आवो नही त् झोपडी ल् घरल् आवुसू जासू कव्हसेज्.

            रचना- चिरंजीव बिसेन,
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
                 दि.२९/०२/२०२०

No comments:

Post a Comment

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...