अरे! कहान गयात तुमि सब भारतवाशी।
एकटो यहांन बडो फड़फड़ाय रही सेव।।
अज् रस्ता परा हिडंता काहे नहीं दिसत।
सजधज कर तुमरोसाती तैयार भई सेव।।
मोला नई ओरख्यात अज्ञानी लोक तुमि।
आव कोरोणा विषाणु मजा लेय रही सेव।।
सबको मनमा बसेव मोरो केत्तो मोठो भेव।
तबाई मचाएकर हाहाकार खुब मचाई सेव।।
मोरा अदिक सेत लगीत रंगींला भाई बन्धु।
जिनला तुमरो मणमा लुकायकर ठेई सेव।।
व्देष, अहंकार, ईर्षा, जलनखोरी लालच।
इनला सदा सदा साठी धरती पर ठेई सेव।।
जसो आब कर रहया सेव तुमि मोरो खात्मा।
अहंकार को विषाणु ला काहे ठेय रह्या सेव।।
सैईतान बनकर दूसरो को जिनगी संग।
काहे तुमि हर जाग् खेल,खेल रह्या सेव।
गलि गलिमा बनकर बहिन बेटी को क़ाल।
काहे तुमि नरभक्षी बन्या फिर रह्या सेव।।
मी विषाणू कोरोना अज़ सेव सकारी नहाव।
पर तुमि काहे विषाणू बनकर फिर रह्या सेव।।
-सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
No comments:
Post a Comment