Monday, April 6, 2020

मोरी माय


पहाटला लवकर होती उठत,
झाडस्यार साफ कर घर आंगन.
वोक बादमा चुल्हो पेटायस्यार,
दार, भात, भाजी बस रांधन.

शाहणी माय ला दे तोंड धोवन पानी,
तब ओरी शाहणो अजी मांग चाय.
सबका उनकी जरूरत की चीज,
समयपर देत होती मोरी माय.

सयपाक होये क बाद मा जल्दी-जल्दी जेव,
बाद मा शिदोरी धरस्यार जाय खेत.
दिवस भर प-हा लगायेव क बादमा,
घर आवनला दिवस बुडता वोला भेट.

दिवस बुडता सयपाक बनायस्यार,
सबला दे राती जेवण खानला.
बर्तन भांडा धोयेव क बादमा,
सबदून बादमाच भेट वोला सोवनला.

टुरू पोटू इन की स्कुल की तैयारी,
पाहुणा पयीन को जेवन खान को काम.
सबकी जरूरत का काम करता करता,
वोला नहीं भेटत होतो बिलकुल आराम.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
        परमात्मा एक नगर, गोंदिया
                   दि.०६/०४/२०२०

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