Tuesday, April 14, 2020

मामा को गाव


मामाकं गावं छुट्टी मा 
जात होता लहानपणं,
अभ्यास व्यभ्यास काही नही
नुसतो खाणं ना खेलणं.

उन्हारो मा स्कूलला
रव्हत होती छुट्टी,
पढाई की फिकर नही
मारनं भेट पुरी बुट्टी.

लुका झापी, तीर कमान
कवेलू को गाडो रव्ह खेलनला,
पाड का आंबा, माच का आंबा
रस,रोटी,सेवई भेट खानला.

पापड बनावत चार पायलीका
आंगनमा खाटपर ठेवत वारनसाती
आमी रव्हजं पाहरापर
कावरा भगावनसाती.

सब सोवत आंगणमा
गर्मीलं बचनसाती
राजा रानी की कहानी सांगत
मन बहलावनसाती.

आता काही तसो
माहौल नही रहेव
नवो जमानोमा मामाको
गांव दूर भयेव.

आता छुट्टी मा भी
टुरू पोटू ईनला नाहाय फुरसत,
कई प्रकार का कोर्स, टी. वी.
मोबाईल मुड़ं मामा भयेव रुखसत.

          रचना- चिरंजीव बिसेन
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
                 दि.१८/१०/२०१९

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