Friday, May 1, 2020

रायबहादुर श्री टुंडीलाल पंवार


           लगभग ५. ६ फिट उंचा छरहरा कद सांवला रंग, चौडा माथा, नुकिली उंची नाक, सिना ताने चुस्त तथा सौम्य वृद्ध व्यक्तित्व था स्व. श्री टुंडीलाल साहाब का।

       आपका जन्म १ जुलाई १८७७ को ग्राम दोंदीवाडा जिला शिवनी मे हूआ तथा जिवन की अत्यंत्य उंचाई प्राप्त करने के बाद आपकी मृत्यु १५ जनवरी १९६० को बालाघाट मे हूयी।

       आपके पिताजी ओखाजी पटेल साधारण कृषक थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम दोंदीवाडा मे हूयी। मिशन हायस्कुल शिवनी से मॅट्रिक की परिक्षा मे आप प्रथम श्रेणी मे आये। तद्पश्च्यात रॉबर्टसन कॉलेज जबलपुर से इंटरमिजिएट मे प्रथम श्रेणी मे द्वितिय स्थान रहा। जिसका उन्हे झटका लगा और हिस्लाप कॉलेज नागपुर से बि. ए. की परिक्षा मे प्रथम स्थान प्राप्त कर संतोष लिया। बि. ए. मे उनके विषय अंग्रेजी, गणित, भौतिकशास्त्र और संस्कृत थे।

         कला स्नातक होने के बावजुद कृषी विभाग की शासकिय सेवा मे आप नागपुर मे फार्म सुप्रिटेंडेंट के पद पर नियुक्त हूये। कुछ दिन तेंदला दुर्ग मे केनाल कलेक्टर रहे। पुन: कृषी विभाग मे आये एंव पदोन्नती पाते हूये सन १९३० मे "डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एग्रिकल्चर छत्तिसगढ डिविजन, मप्र. के पद पर सेवामुक्त हूये। आपने लगभग ३० वर्षो तक शासकिय सेवा की तथा मृत्युपर्यंत आप पेन्सन पाते रहे। आपको वर्ष १९२६ मे ब्रिटिश शासन द्वारा "रायबहादुर" की सन्मानणिय उपाधी से विभुषित किया गया। आपको रायबहादुर की उपाधी क्यु मिली? इसका प्रमुख कारण आपकी शाशन के प्रती तथा अपने देश के प्रती इमानदारी का उत्कृष्ठ नमुना है। आपका उत्कृष्ठ चरित्र अनेक आदर्शो से भरा पडा है। आप अपने विद्यार्थी जिवन मे अपने हात से ५ रोटिया बनाते, ३ रोटिया दोपहर को एंव २ रोटिया रात को खाते थे। आप चाय और दुध नही लेते थे।

       मितव्यक्तिता आपकी उत्कृष्ठ और आदर्श सिमा पर थी। आप अपने चौथाई वेतन से परिवार का खर्चा चलाते थे। शेष वेतन बँक खाते मे जमा करते थे। आप दोंदीवाडा के साधारण कृषक परिवार मे जन्मे थे। बाद मे स्वंय की कमाई से बहूत बडी संपत्ती अर्जित की। ग्राम खैरलांजी, टेकाडी, तथा देबठाना की मालगुजारी खरिदी। बालाघाट मे बंगले खरिदे एंव बनवाये। आपने आधी पेन्सन सरकार को बेच दी और ग्राम टेकाडी खरिदा। शेष आधी पेन्सन आजिवन लेते रहे। आपका कहना था की "सही चिज का सही उपयोग करो" आप कठोर अनुशासन प्रिय इमानदार प्रशासक थे। आपके उत्कृष्ठ शौक पढना, घुमना, बागवानी, कृषी एंव शिकार थे। चाय, तंबाखु, सिगारेट, का कोई व्यसन नही था। दोपहर को आप कभी सोते नही थे। यद्यपी आप आधा घंटा आराम कर लेते थे। आप मृत्युपर्यंत काम मे लगे रहे। आप अक्सर कहते थे "जितना काम करोगे उतना अधिक जिओगे"

      उन दिनो रायबहादुर के समकक्ष व्यक्तियो के प्रमानपत्र पर अनेको का भाग्योदय होता था। रायबहादुर टूंडिलाल इतने कडे थे की अपात्र को कभी प्रमानपत्र नही देते थे। चाहे वह उनका निकट संबंधी क्यु न हो...

       ऐसे कुशाग्र बुद्धी, कुशल प्रशासक, इमानदार, सादगीपुर्ण मितव्ययी, नियमबद्ध कठोर चरित्रवान व्यक्ती ने समाज और राष्ट्र को अपनी बहूमुल्य सेवाये अर्पित की।

        आपके काकाजी लखाराम पंवार से उन्हे शिक्षा की प्रेरणा मिली। लखाराम पंवार पटवारी थे और बाद मे रिव्येन्यु इन्सपेक्टर बने। वे पंवार समाज के प्रथम शासकिय सेवक थे। तथा उनके भतिजे टूंडिलाल पंवार प्रथम स्नातक थे। श्री यदूराजसिंह तुरकर एंव रामकुमार तुरकर आपके पुत्र है।
संदर्भ : भोज पत्र, स्मरण ग्रंथ १९८६. संपादक स्व. श्री पन्नालाल बिसेन

                           - सोनू भगत
           powarihistory.blogspot.com

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