Friday, May 1, 2020

स्व श्री मनराज पटेल:- पोवारी बोली साहित्यकार

स्व श्री मनराज पटेल की पोवारी साहित्य साधना

 हृदय की अतलतम गहराइयों से निकली अंतर्रात्मा की  आवाज से  सिरजा साहित्य पवित्र और उदात्त होता है

 अन्य लेखन और पत्रकारिता को पीत कहा जाता है पर साहित्य को सदैव पवित्र ही माना जाता है।

हृदय की अतलतम गहराइयों से निकली अंतर्रात्मा की  आवाज से  सिरजा साहित्य पवित्र और उदात्त होता है। ऐसा साहित्य ही एक हृदय की आवाज को  दूसरे हृदय तक पहुंचाने में सफल हो पाता है।  प्रारंभ में शिक्षक और बाद में अधिवक्ता रहे स्व श्री मनराज पटेल जी  ग्राम गुढरी साकोली जिला भंडारा में जन्मे । वेअपने समय के पोवारी बोली के ख्यात शब्द शिल्पी रहे हैं। पवारी बोली के साहित्य की जब भी चर्चा होगी उसमें आपके द्वारा सिरजे गये पोवारी बोली  साहित्य को सदैव सम्मान की दृष्टि से याद किया जाता रहेगा ।

साहित्य के शुरुआती दिनों में लेखक को भी कवि ही सम्बोधित किया जाता था। कवि या लेखक होना असामान्य बात हुआ करती थी। कवि वाल्मीकि संसार के पहले कवि माने जाते हैं ।  मैथुनरत क्रौंच युगल पर बहेलिए द्वारा बाण चलाए जाने से मृत जीवनसाथी की याद में   क्रौंच पक्षी की हृदय विदारक चित्कार सुनकर वाल्मीकि जी के  ह्रदय तल से अचानक एक श्लोक फूट पड़ा था जो रामायण महाकाव्य का आधार बना। इसीलिए कहा जाता है-

 वियोगी होगा पहला कवि,
 आह से निकला होगा गान। बरसकर आंखों से चुपचाप,
 बही होगी कविता अनजान।

अंग्रेजी में भी साहित्य की सर्जना के लिए इसी तरह के भावों की आवश्यकता महसूस की गई है।
 Poetry is a spontaneous overflow of powerful feelings. यही कारण है समाज में साहित्य और साहित्यकार को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। घर घर में भगवत गीता और रामचरितमानस का होना इस बात का प्रमाण है। अन्य लेखन और पत्रकारिता को पीत कहा जाता है पर साहित्य को सदैव पवित्र ही माना जाता है।

स्व मनराज पटेल जी द्वारा पोवारी बोली में सम्मानजनक संख्या में रचित साहित्य  उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार है-
1.श्री भागवत गीता अमृत
2. जागो भाऊ आता जागो
3. चलो उठो आगे बढ़ो
4.रंगल्या तोंदराच्या बड़ा
5.गायो दमदमादम,नाचो छमछमाछम
6.जाई शरण तू प्रभुचरणी
7.शेतकन्याचे ज्वलंत प्रश्न आणि उपाय
8.झाड़ीचा मानुष जागवा
9. गावाकडील कथा
10.राजा भोज नाटक
11.हवी असेल सत्ता, तरह थांद्याआत्महत्या
12.या पोवार की टुरी- कैसेट
पोवारी बोली के शब्द शिल्पी पर हमें गर्व है।
 संकलन-श्री संतोष कौशिक पांढुर्णा
आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।

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