Friday, May 1, 2020

डॉ. ज्ञानेश्वर बापुजी टेंभरे



!!  डॉ. ज्ञानेश्वर बापुजी टेंभरे  !!
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      डॉ. ज्ञानेश्वर बापुजी टेंभरे, कुछ समाजबंधुओ के लिए नया नाम तथा कुछ पवार बंधुओ के लिए प्रेरक नाम। आज हम पवार समाज का इतिहास जान पाए है वह डॉ. ज्ञानेश्वरजी टेंभरे की ही देन है, उनकी दो रचनाए १) पवारी ज्ञानदीप २) चक्रवर्ती राजा भोज, यह दो किताबो के माध्यम से पवार समाज अपना इतिहास तथा संस्कृती, भाषा व्याकरन, रिती रिवाज, मान्यताए इत्यादी जान पाए है। भविष्य मे उनकी यह मुख्य दो रचनाए समाज को अपने इतिहास से अवगत कराती रहेगी। बहौत कम लोग डॉ. टेंभरेजी से परिचित है, उन्होने समाज के लिए जो योगदान दिया है वह अतुल्यनिय है, संछिप्त रुप से डॉ. टेंभरेजी का परिचय निचे दिया गया है।

 जन्म एंव शिक्षा

        ग्राम मेंढा तहसिल तिरोडा जिला गोंदिया मे दि. १६ अप्रैल १९४४ को ज्ञानेश्वर टेंभरेजी का जन्म एक कृषक परिवार मे हूआ। पिता बापुजी टेंभरे तथा माता स्वरस्वती भगत टेंभरे थी, ज्ञानेश्वरजी टेंभरे की प्राथमिक शिक्षा १९५० से १९५४ तक ग्राम मेंढा के जिला परिषद प्राथमिक स्कुल से हुयी। उके बाद १९५४ से १९६३ तक उनकी माध्यमिक शिक्षा जे. एम. हायस्कुल रेलटोली गोंदिया से हूई। १९६३ से १९६८ तक डि. बी. सायंस कॉलेज गोंदिया से बि. एस. सी. एंव उसके बाद १९६८ से १९७० के कालावधी मे एम. एस. सी. स्नातकोत्तर प्राणीशास्त्र विभाग से पी एच- डी. नागपुर विश्वविद्यालय से ग्रहन की।

       तुरंत १९७३ मे उनका स्नातक प्राणीशास्त्र विभाग मे नागपुर विश्वविद्यालय मे व्याख्यता पद पर चयन हूआ। १९७६ मे पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च के लिए डॉ. टेंभरेजी की आतंराष्ट्रिय स्तर पर नियुक्ती हूई। जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय से "इलेक्ट्रॉन मायक्रोस्कोपी" की शिक्षा (१९७६- १९७८) ग्रहन कर वे स्वदेश लौटे। वर्ष १९७० - १९७३ मे डॉ. टेंभरेजी को Ph.D के लिए UGC दिल्ली की ज्युनियर रिसर्च फेलोशिप और पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च के लिए जर्मन सरकार से DAAD की फेलोशिप प्राप्त हूई। उसके बाद १९८० मे जुरिच विश्वविद्यालय स्वित्झरलँड, १९९० मे जॉनसन विश्वविद्यालय न्यु टेनेसी अमरिका, एंव २००२ मे योगाकार्ता विश्वविद्यालय इंडोनेशिया के वैज्ञानिक परिषद मे आमंत्रन पर उन्होने व्याख्यान दिए है।

 सामाजिक कार्य

     वर्ष १९६८ मे डॉ. टेंभरेजी ने नागपुर मे "पवार विद्यार्थी संघ" की स्थापना की जो १९७३ तक कार्यरत रहा। वर्ष १९८३ मे उन्होने नागपुर शहर मे "पवार युवक संघटन" की स्थापना की, वे १९८३ से १९९७ तक पवार युवक संघटन के अध्यक्ष रहे। आज की स्थिती मे पवार युवक संघटन नागपुर का सबसे बडा पवार संघटन है। सन १९८४ से "पवार संदेश" को पुणर्जिवित कर समाज की प्रथम वार्षिक पत्रिक 'पवार वाहिनी' के  रुप मे प्रारंभ की, तब स लेकर आज तक वे 'पवार संदेश' को प्रतिवर्ष प्रकाशित करते आ रहे है एव वह संस्थापक एंव संपादक भी है। वर्ष १९८८ मे १६००० चौरस फुट भुखंड मे पवार विद्यार्थी भवन का निर्मान उन्होने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एंव छत्तिसगढ के गांव गांव जाकर समाजजनो से १९८२ - १९८६ तक अनवरत प्रयास प्रयास से आर्थिक सहयोग से पाकर निर्मान किया गया। आज यह भवन बहूउद्देशिय है इसमे सांस्कृतिक भवन, छात्रावास तथा अथिती गृह के रुप मे केवल पवार समाज के आर्थिक कोष से साकार हूआ जिसका अभी विस्तारिकरन का कार्य चालू है। डॉ. टेंभरेजी वर्ष २००० से वर्ष २००६ तक अखिल भारतिय पवार महासभा के अध्यक्ष पद पर रहे।


सन्मान

       वर्ष २०१३ मे डॉ. टेंभरेजी को international society of indocrinology द्वारा eminent indocrinologist यह अपाधि प्राप्त हूई। वर्ष २०१४ मे international society of odonatology द्वारा father of Indian odonatology उपाधि द्वारा सन्मानित किया गया तथा university of grant commission द्वारा lifetime achievement award द्वारा उन्हे सन्मानित किया गया। वर्ष २०१६ मे पवार युवक संघटन द्वारा सर्वोच्च सामाजिक नागरी "जिवन गौरव" पुरस्कार से उन्हे सन्मानित किया गया। वर्ष २००० से २००४ तक डॉ. टेंभरेजी नागपुर विश्वविद्यालय मे विभागप्रमुख विज्ञानशाखा, अधिष्ठता (डिन) विद्यापिठ व्यावस्थापन समिती, विद्वत परिषद व वीधी सभा के अनेक पदो पर विभुषित किया गया। उम्र के ६०वे वर्ष २००४ मे वह डिन तथा प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत हूए; उनके मार्गदर्शन मे २१ ph.D शोधकर्ता आचार्य उपाधि प्राप्त कर चुके है।

साहित्य, किताब, रचनाएँ

       डॉ. टेंभरेजी ने insects endocrinology शिक्षा क्षेत्र मे ८० से भी ज्यादा रिसर्च पेपर विभिन्न आतंराष्ट्रिय पत्रिकाओ मे प्रकाशित किए है। उसी के साथ वर्ष १९९७ मे modern entomology २०१० मे technique in life sciences एंव २०१२ मे endocrinology यह तिन किताबे लिखकर हिमालया पब्लिसिंग हाउस से प्रकाशित की। एंव उन्हे उपयुक्त समय पर समृद्ध करते आए है। आजके स्थिती मे तिनो पुस्तिकाए आंतरराष्ट्रिय स्तर पर प्रचलन मे है।

       वर्ष २०११ मे उन्होने "पवारी ज्ञानदीप" पुस्तिका की रचना की एंव हिमालया पब्लिसिंग हाऊस मुबंई द्वारा प्रकाशित की गई। वर्ष २०१४ मे "चक्रवर्ती राजा भोज" पुस्तिका की रचना की, एंव उस पुस्तिका को राष्ट्रिय पवार क्षत्रिय महासभा द्वारा प्रकाशित की गई। वर्ष १९८३ से लेकर वर्ष २०१७ तक वे पवार युवक संघटन नागपुर से "पवार संदेश" का प्रकाशन प्रतिवर्ष करते आए है। तथा विभिन्न सामाजिक पत्रिकाओ मे उनके लेख प्रकाशित हूए है।

जीवन

         दि. १६ अप्रैल २०१७ को डॉ. टेंभरेजी उम्र के ७४ वे वर्ष मे पदार्पन करने जा रहे है, उन्होने अपना संपुर्ण जिवन स्वाभिमान के साथ बिताया। लगभग ७४ वर्ष की आयु मे भी वे व्हाट्स एप चला लेते है एंव युवाओ को मार्गदर्शित करते रहते है। उन्हे धार्मिक ग्रंथो का सखोल ज्ञान है, वे संस्कृत भाषा मे निपुन है एंव पवारी भाषा पर उनका अती प्रेम है, उनकी कर्मभुमी नागपुर जरुर है लेकिन उनका जन्मभुमी के प्रती आज भी लगाव है। वे जर्मन, स्पॅनिष, इंग्लिश, हिंदी, मराठी, पवारी भाषाओ मे परंपरागत है, फिर भी स्वदेशी हिंदी, मराठी एंव पवारी भाषा पर अभिमान करते है एंव दैनंदिन उपयोग की भाषाओ मे उपयोग करते आए है। डॉ. ज्ञानेश्वर बापुजी टेंभरे समाज मे एक आदर्श है, हमारे प्रेरनास्रोत है, हम उनकी दिर्घायु की ईश्वर से प्रार्थना करते है एंव डॉ. टेंभरेजी से निवेदन करते है की वे हमारा समय समय पर मार्गदर्शन करते रहे।


           ✍ सोनू भगत 

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