उज्जैनी नगरी पँवार शासक महाराज विक्रमसेन विक्रमादित्य की नगरी थी और उनकी माँ हरसिद्धि देवी तथा माँ कालिका देवी उनकी आराध्य थी। कहा जाता हैं की कुलदेवी माँ हरसिद्धि भवानी के सम्मुख महाराज विक्रमादित्य ने अपना शीश अर्पण किया था।
महाराजा भोजदेव ने अपनी राजधानी उज्जैन से धार स्थान्तरित की थी और वहां माँ गढ़कालिका का मंदिर बनवाया था। पौराणिक कथाओ के अनुसार महाराज जगदेव पँवार ने १०९५ ईशवी में सात बार अपना शीर्ष माता गढ़कालिका के चरणों में अर्पण का प्रयास किया और हर बार माता ने राजा को बचा लिया। भाटो के अनुसार आठवीं बार में माता ने उनका शीश स्वीकार कर अपने चरणों में स्थान प्रदान किया और यह घटना दिन रविवार को ११५१ विक्रम संवत, माह चैत्र को हुई थी।
मध्यभारत के पँवार, मालवा से आकर इन क्षेत्रों में बसे थे और आज भी ये अपने पूर्वजों की कुलदेवी माँ गढ़कालिका को अपनी कुलदेवी मानते है। इन क्षेत्रों में हर सामाजिक कार्य माँ गढ़कालिका की आरती के साथ ही आरम्भ होते हैं।
जय माँ गढ़कालिका, जय माँ हरसिद्धि भवानी
जय अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय
✍ ऋषि बिसेन , नागपुर
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