Sunday, May 3, 2020

काव्यस्पर्धा क्र. 8 विषय-कास्तकार


सबकी भूख को निवालों की दरकार आंव,
मी भारत माय को बेटा, कास्तकार आंव!

बड़ीच कड़ी रहव से मोरी ड्यूटी,
नहीं रहव कोई तनखा, अना छुट्टी!
तीज तिहार अना सब दिन काम करूसु,
मी धरती पुत्र मेहनती कामगार आंव!

फसल लहलहाई मोरो पसीना को जल ल,
अन्नपूर्णा का सब भंडार भरिन मोरो हल ल!
मोरी मेहनत ल से येव जगत सब सम्पन्न,
मी यहाँ सब जिन्दगियों को दारोमदार आंव!

न कपड़ा लत्ता, न साजरा मोरा केशु,
धुल्ला ला बिछाय के तपन पंघर लेसु!
न कहीं घुमनों फिरनो, न कोई आराम,
मी अन्नधन का ढोला को पहरेदार आंव!

दुनियादारी की चकचौन्ध ल दूर सेव,
कभी सूखों, कभी बाढ़ ल मजबूर सेव,
लूट लेसेति कभी मोला सब सेठ ब्यापारी,
पुण्य की खेती को हाथ भयो लाचार आंव!

कसेति मोला अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी,
पर मोरो तन मा मांस नहाय, सेती बस हड्डी,
मोरो येन पौरुष की खबर जोकोमा भी छपी,
पुरो फाड़ दिय्यो गयो मि वू अख़बार आंव!

सबकी भूख को निवालों की दरकार आंव,
मी भारत माय को बेटा, कास्तकार आंव!

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाड़ा 【बालाघाट】
दि.- ०३/०५/२०२०

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