मंथन
यन शिव शंकरला कोनी कसेती भोला।
ॐ नमःशिवाय, मंत्र से तरनला।।घु।।
रई मंदार की बनी
दोरी सरप की तनी
जहर प्राषन क बारी, विनती कैलासपतिला।।१।।
भयोव समुद्र मंथन
निकलेव जहर भारी।
पियीस महादेवन, निलकंठ नाव येला।।२।।
शिरपर बहसे गंगा
रव्हसे पियेके भंगा।
अलमस्त बैल वालो,गणेश क पिताला।।३।।
रत्न हे मंथन माका
सबक सेती हे कामका
अमरूत यव देवईनला,सुरा या राक्षसला।।४।।
मंथन करो समाज को
उच्च विचार प्रगती को
होये विकास सबको,विष्व विजय करनला।।५।।
वाय सी चौधरी
गोंदिया
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