ओ! कैलाश वासी नीलकंठ महादेव
सब देव मा तू सेस सबले मोठो देव
सुरपति भयो, दुर्वासा को कोप भाजन
सप्पा वैभव,लक्ष्मी वोला सोडके गईन
समुद्र मंथन ले होये धन की पूर्ति
इन्द्र अना बलि साथी संग भिड़ गईन ।।
भयी तैयारी तबा समुद्र मंथन की
कासव रुप धरयो विष्नु भगवान
पाठा मा धरकर मंदराचल गिरी ला
देवता को हित कर ,बढा़यो मान ।।
कासव को पाठ मंदराचल धरकर
वासुकी नाग ला घुसरन बनाइन
चौदा रतन ,धनवंतरी अना लक्ष्मी
समुद्र ले मथके ,तबा बाहर आइन ।।
अमृत को पयले हिट्यो भारी हलाहल
वोको प्रभाव ले अंधेला भय गयो
हिम्मत कोई मा नई, हलाहल धरन की
देवता इन को समूह कैलाश मा गयो ।।
तबा जगती को जीवन रकसा खातिर
गरो मा समाय लईस हलाहल ला देव
कंठ भयो नीलो हलाहल को प्रभाव ले
तबले शिवको नाम पड़्यो नीलकंठ महादेव ।।
ओ! कैलाश वासी नीलकंठ महादेव
सब देव मा तू सेस सबले मोठो देव ।।
रचनाकार - पंकज टेम्भरे 'जुगनू'
परसवाड़ा , बालाघाट
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