ऋषी दुर्वासा शिवदर्शनला शिष्यसंग भया प्रस्थान
रस्तामा दूर्वासाला इंद्रदेव भेट्या ऐरावतपर सवार
पारिजातक की दिव्य फुलमार इंद्रला देइन उपहार
फुल मामूली समजके इंद्रन ठेईस ऐरावत परा मार
ऋषी दूर्वासा भया क्रुद्ध अना देईन इंद्रदेवला श्राप
ऐश्वर्य, लक्ष्मी गई सोडके ऋषि अपमान को पाप
अहंकार नष्ट भयेव इन्द्र को ऐश्वर्य भयेव तार तार
इन्द्र पस्तायेव करिस दुर्वासा ला विनती बार बार
सागर मंथन करेपर ऐश्वर्य प्राप्त होये सब एकसात
देव,दानव करीन मंथन एकको बसकी नोहती बात
मंदार पर्वत बनेव घोटनि, चराट वासुकी नाग
पाठपर धरीन मंदारला स्वयम विष्णु भगवान
समुद्र मंथन सुरु भयेव देवदानव लगावसेत बल
रत्न चवदा निकल्या,रत्न पहलो विष हलाहल
देव दानव घबराया कोनी नहीं तयार विष पिवन
तबं आया उमा महादेव सबको बचावन जीवन
विषको प्याला उतरेव गरोमा भडकी अंगार ज्वाला
देव दानव अचंबित गरोला उमाको हात की माला
कंठ मा जम गयेव विष हलाहल निली भई काया
नीलो रंगको भयेव कंठ नीलकंठ महादेव की माया
✍️ सौ.छाया सुरेंद्र पारधी.
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