भारतवर्ष मा पोवार समाज प्राचीन काल पासून प्रसिद्ध से। येन् समाज मा सम्राट विक्रमादित्य, राजा भृतहरि, राजा भोज सारखा महापुरुष ना महान शासक भया।
पोवार मूलतः राजवंशी आय।अगर पुरातन इतिहास देखेंव जाय त् वैनगंगा तटिय 36 कुल को पोवारों की आर्थिक स्थिति सम्मानजनक रही से। पोवारों को शरण मा गांव को गरीब जो भी आव् ओकी मदत करनो मा समाज अग्रेसर रव्ह , ब्राम्हण, गोंड ,गोवारी, हल्बी या अन्य मंग बिह्या हो या अन्तिमसंस्कार येन् सब कार्य ला संभालत होता।
आझादी को पहेले भी जमींदार मालगुजार महाजन ना किसान इ. होता। तीक्ष्ण बुद्धि,ना दूरदर्शिता को कारण आमरो समाज गांव को गांव मा छोटा मोटा व्यवसाय साथोसाथ दूध को भी व्यवसाय करत होता। जो व्यक्ति दूध खरेदी करके जात होता ,त् हिसाब ध्यान मा ठेवन साठी चूलो पर की *काइ* लक टिक् करत होता।
आमरो समाज मा *ठलवा* नही को बराबर होता। *धुरकुरी* जरूर रह्या पर *धावक्या* नहीं रह्या, ना कोणी पोवार न भिक मांगिस।
कालांतर मा मोठो मोठो किसान की हालत गंभीर होत चली। मालगुजारी, पटेली, ना महाजनी को लोप भएव को बाद काही न् सम्भालीन काहिं नही संभाल सक्या।
आर्थिक स्थिति नाजुक होन का कई कारण सेती।नौकर चाकर को अभाव, सरकार को पॉलिसी अंतर्गत 2/-(दूय रूपया) किलो अनाज भी भेटन लगेव।जे पहेले नौकरी करत ,ओय आता खेती बटई /अधिया (50-50) करण लग्या।
अज को सध्यास्थिति मा आमरा पोवार भाई न व्यापार, ना सरकारी नौकरी पर अच्छी पकड़ जमाइन सेन। एडुकेशन ला मुख्य आधार बनायकर प्रायवेट सेक्टर मा भी चांगलो स्थान प्राप्त करीन ना आपली आर्थिक स्थिति सुधारनो मा कामयाब भया।
आता वू समय आय गयेव की प्रत्येक व्यक्ति न् समाजोत्थान साठी काहिना काही योगदान देहे पाहिजे।
धनराज खुशाल भगत
"योगक्षेम"
आमगांव/बाम्हणी
09/06/2020
9420517503
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