ईर्ष्या/ द्वेष : मन पर बोझ
३०/४०साल पहेले परिवार का बुजुर्गों द्वारा आपलो नाती नतरुईन ला दंतकथा सांगण को रिवाज होतो।दंतकथा म्हणजे काहाय?
दंतकथा म्हणजे एक व्यक्ति द्वारा सांगी गई मौखिक कहानी दूसरों न् तीसरो ला परंपरागत पुनरावृत्ति को क्रिया ला दंतकथा कसेत।
असी आयक़ी गई कहानी /दंतकथा प्रस्तुत कर् रही सेव।
एक साधुबाबा/ महात्मा न् आपलो चेलाइनला कहिस की जब् सकारी प्रवचन आयकन आहो त् आवन भारी एक झोर्या /थैला मा चांगला मोठो साइज का आलू पर नाव लिखकर आनो जिनकी तुम्ही जेतरो लोकहीन घृणा कर् सेव । सहिमा चेला दुसरो दिवस आलू धरके आया। कोनी पाच ,कोनी न आठ ,दस आदि.
आता साधुबाबा/ महात्मा जी कहिन की एक हप्ता वरी ये नाव लिख्या आलू खाता - पिता सोता - जागता तुम्ही जहा भी जाव् हमेशा आपलो जवर ठेवो। चेला काही समझ नही पाया । साधुबाबा /महात्मा जी को कव्हनो का से। परंतु साधुबाबा को आदेश को पालन करनो जरूरी समझिन। दूय - तीन दिवस बाद चेलाइन न् आपस मा शिकायत करनो सुरु कर् देईन। जिनका आलू जास्त होता ओय बहुत परेशान होता। जसो - तसो सात दिवस बिताईन,ना साधुबाबा को शरण मा गया। साधुबाबा न् कहिन की आपापली आलू की थैली बहार निकाल कर् ठेवो तब चेला शांत भया।
*साधुबाबा* : तुमला एक हप्ता को अनुभव कसो रहेंव? चेलाँ द्वारा आपबीती ,आलूनकी बदबू की परेशानी, मानसिक त्रास, आदि. सब न् सांगिन तब् सबको बोझ हल्को भयेव।
*साधुबाबा* : येव अनुभव मी तुमला *शिक्षा* देन ला करेव होतो।
जब् एक हप्ता मा तुमला आलू बोझ लगन लग्या तब् सोचों, बिचार करो की जिनकी ईर्ष्या,नफरत कर् सेव उनको केतरो तुमरो मन पर बोझ होत रहे,मन ना दिमाग की कसी हालत होत रहे। या ईर्ष्या तुमरो मन अनावश्यक बोझ पडसे। वोको कारण तुमरो मन मा भी बदबू भर जासे ठीक ओन आलुइन सारखो..... एकोलाइक आपलो मन ला येन् हीन भावना लक बाहर निकाल लेव।
अगर तुम्ही कोनीला प्यार नही देय सको त् कम से कम नफरत/घृणा/द्वेष नोकों करो, तबच तुमरो मन स्वच्छ, निर्मल ना हल्को बनेव रहे,नहीं त् जीवन भर इनला डुवारता - डुवारता तुमरो मन ना तुमरी मानसिकता दुहि बीमार होय जायेत।
धनराज भगत
आमगांव/ बाम्हणी
९४२०५१७५०३
०२/०६/२०२०
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