कैलास निवासी शिव से भोला भंडारी,
करसे हमेशा नंदी की सवारी.
कार्तिकेय अना गणेश को आय पिता,
संग सदा रव्हसे पत्नी पारबती माता.
महादेव से अवढर दानी,
त्रिशूल धारी महा पराक्रमी.
गरो मा रव्हसे नाग की माला,
पहन से हमेशा मृगछाला.
मस्तक पर विराजसे चंद्रमा,
जटा माल् निकलसे माता गंगा.
हात माको डमरू बजसे डम डम डम,
शंकरजी करसेत तांडव छम छम छम.
समुद्र मंथन मा निकल्या चौदा रत्न,
चांगलो साती सबन् करीन प्रयत्न.
हलाहल विष बी निकल्यो वहा ल्,
सब घबराय गया विष होतो जहाल.
महादेव न् पिईस वु हलाहल,
वोक् बदन मा विष ल् भई हलचल.
महादेव को गरो निलो भय गयो,
वोक् ल् उनको नाव निलकंठ भयो.
जहर को असर कम करन साती,
निलकंठ पक्षी की वहा ल् भई उत्पत्ति.
मून निलकंठ पक्षी ला मान्यो जासे शुभ,
दसरा क् दिवस वोको दर्शन से अति शुभ.
रचना - चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
दि. ७/६/२०२०
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