Sunday, November 29, 2020

पवनी किला एंव तुरकर

@sb_631

            !! पवनी किला एंव तुरकर !!
                   भाट के पोथियो से
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            वैनगंगा नदी के दाहिने किनारे स्थापित पवनी किला जिसे 'शुंग-सातवाहन' काल मे स्थापित बौद्ध स्तुप भी कहा जाता है। बाद मे यह किला वाकाटक काल मे सांस्कृतिक स्थल के रुप मे प्रशिद्ध हूआ। सर अलेक्झांडर कनिंगहॅम (१८७३-७४), हेन्री कझिन्स (१८७९), सर जॉन मार्शल (१९२६), एच. हरग्रीव्ह्ज (१९२७) आदी ने इस किले के बारे मे विस्तार से लिखा है। इस स्थल का पुरातत्विय महत्व ध्यान मे रखकर ब्रिटिश सरकार ने पवनी किला एंव पुरावशेष संरक्षित स्मारक के रुप मे घोषित किया था। भारतिय पुरातत्व विभाग के मध्य भारत के सहाय्यक पर्यवेक्षक जे. सी. चंद्रा इन्होने १९३६ मे एक पत्र मे इस किले का वर्णन किया है। वही १९५६ मे वा. वी. मिराशी उन्होने छायास्तंभ खोज निकाला, एंव १९६९ जेष्ठ संशोधक वि.भि. कोलते इन्होने ताम्रपत्र प्रकाशित किया। उपरोक्त जानकारी किले के प्रवेशद्वार पर लगे एक बोर्ड पर लिखी गयी है।
            गोंड शासनकाल मे यह किला गोंडवाना शासनकाल की धरोहर थी। पश्च्यात मराठा शासनकाल मे यह किला सैनिक छावनी के रुप मे उपयोग किया जाता था। भाट के पोथियो मे तुरकर परिवार का संबंध इस किले से है यह स्पष्ट रुप से लिखा गया है। भाट के पोथियो मे विजयसेन तुरकर को उमरकोट गढी का सुबेदार लिखा गया है; जो गोंड राजा बख्त बुलंदशाह के निमंत्रन पर मदत हेतू शिवराम पारधी, सुमेरसिंह बघेले, दिगपालसिंह बिसेन, कनकसिंह पटले, मोतिप्रसादसिंह ठाकुर, तोमरसिंह टेंभरे आदी के साथ ३७०० की सेना लेकर बख्त बुलंदशाह की मदत हेतू गोंडवाना आये। बाद मे राजा बख्त बुलंदशाह द्वारा नगरधन का किला प्रदान करना एंव मराठा शासनकाल मे वैनगंगा क्षेत्र मे विस्तारित होना कुछ दस्तावेजो से पता चलता है। 
            भाट के पोथियो मे पवनी किला एंव विजयसेन से तुर्क (तुरकर) पोथी की सुरुवात होती है। बाद मे विजयसेन के वंशज मराठा सेना मा शामिल हूये एंव सेना मे उच्च पदो पर पहूंचे होंगे। पोथियो के अनुसार मराठा काल मे *चिखलु तुरकर* पवनी किले के सुबेदार रहे होंगे। एंव बाद मे उन्होने तुमसर तहसिल मे "सिहोरा" गांव बसाया एंव तुरकर वही स्थायी हूये। कालांतर से तुरकर वहां से देश के विभिन्न हिस्सो मे विस्थापित हूये।

संदर्भ: पवनी किले का अभिलेख, भाट की पोथियां

- सोनू भगत 

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