झाडनं फेकीस जुना वस्त्र
अना आवन लग्या पाझर नवा
आयेव आयेव श्रावणमास
धरती न पेहरीस वस्त्र हिरवा
तपन पाणी की लुकाछीपी चलसे
घडीभर तपन अना सरसर सीरवा
मौसम बी रव्ह से मदमस्त अना
दिवसा बी रव्हसे मस्त गारवा
हिवरी नऊवारी धरतीमाय पेहरसे
अंबर मंग लगातार देखसे
नही सबर होय अंबरलाबी म्हणून
ढग को रूपमा भेटनला आवसे
मनभावन नजारा दिससेत
धरतीमाता को आचल मा
असो होसे फक्त अना फक्त
सुंदर,सुरस श्रावणमासमा
आनंदीत,उल्हासित होसे मन
नभोमंडप मा फुलसे इंद्रधनू
मनला मोहिनी मा टाकसे
धरतीमाय आमरी कामधेनू
निलो आकाश मा लगसे
इलबीस ढग झुला झुलसे
धरती परा अचानक पडके
बागबगिचा सुंदर फुलसे
रंग हिवरो समाधान को साजरो
धरतीमायन लगसे पेहरीसेस
तीरपत काया होसे नजारा देखके
असोच साजश्रूंगार लेयीसेस
✍सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जि. गोंदिया
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