लाक्तखाड
आयो खेती को हंगाम,भयी तिज आता।
जाय ग्रीष्मकी गरमी,बरसात आय आता।।
जुपो खातकी डाली,खरफड़ा करो आता।
मोड़ो तोरका तुराटा ,कचरा पेटावो आता।।
घरकी करो डागडुजी , बरसातकं पहिले।
घरपर सावो कवेलु ,पानी आवनकं पहिले।।
बरसातमा लंबी झड़,अस्वस्त करदेसे।
सब सजीव सृष्टी, अती वृष्टीलं मरजासे।।
पपिहाकी कुक जाहे,जब बसंत न आये।
तबतक लाक्तखाड़की ,महिमा या धरती गाये
ऋत्तूचक्र एक बरसको, बदलाव सब होसे।
नवजीवन सृष्टीको ,दृष्टि मा समाय जासे।।
वाय सी चौधरी
गोंदिया
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