लाक्तखाड
एकमा रवत होतो पुरो कुटुंब आंदी को राजमा ।
पोवार घर एक हाती सत्ता रव सासू को हातमा।।
बहुबईदी रवत चारपाच नातीनतरू उनको घरमा।
भरेव घरं रव तब सबलग्या रवत खेतंको काममा।।
उन्हारो को गावतर खायकर बहु आव गावमा।
संग खाजो आनं चिवडा, लाडू, घेंघरी सातमा।।
सकारी बहु देतं होती पीलेट खाजोको हातमा।
परिवार एकमा बसकर सब खात होता सातमा।।
पोवार माचं से टुरीला खाजो को दस्तुर खासमा।
बारा महिना की सारी चोरी दुय लेसेत सालमा।।
जसो धर्तिको रूप बदलसे लाक्तखाड घातमा।
बेटी भी खुश होय जासे मायघरको खाजोमा।।
लाक्तखाड घाई लका कास्तकार जासे खेतमा ।
खातकाचरा खारीको समया अावसे पानी घातमा।।
घाम गारसे मेहनत करसे कास्तकार वोको खेतमा।
रिमझिम पानी मा खुशी माव नहीं सबको मनमा।।
सौ.छाया सुरेंद्र पारधी
सिहोरा
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