समूह परिचय
“पोवारी इतिहास साहित्य अना
उत्कर्ष” समूह, क्षत्रिय पोवार(पँवार) वंश को इतिहास, उनकी बोली पोवारी, संस्कृति को प्रचार प्रसार अना समाजोत्थान साती बनायी गई से । येको
उद्देश्य पोवारी बोली, संस्कृति, रीती-रिवाज,
परंपरा अना सामाजिक धरोहरो को सरंक्षण अना संवर्धन से ।
पोवार इतिहास, साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित
बोधकथा भाग क्र. १२
क्रमांक |
रचना |
रचनाकार को नाव |
1.
|
सब धन माटी मोल |
प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु
टेंभरे |
2.
|
हातभर ककडी , बितभर बेल |
श्री गुलाब रमेश बिसेन |
3.
|
एक घर की कहानी |
सौ. लता पटले |
4.
|
मन की शांति |
सौ छाया सुरेंद्र
पारधी |
5.
|
माय की माया |
श्री डी पी राहांगडाले |
6.
|
दगाबाज़ मगरमच्छ |
श्री सी. एच. पटले |
7.
|
हंस अना घुबड |
श्री चिरंजीव बिसेन |
8.
|
सफलता की कुंजी |
डॉ.शेखराम परसराम येळेकर |
9.
|
कर्मको फल |
श्री वाय सी चौधरी |
10.
|
ससा अना् कासु |
श्री पालिकचंद बिसने |
आयोजक अना परिक्षक
प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
******************************************
1. सब धन माटी मोल
बात बहुत पयले कि आय जय नगर को राजा कृष्ण देवराय न आपरो राजगुरु को
मुख लक एक दिवस संत पुरणदास जी महाराज को सादगी पुर्ण अना लोभ मुक्त जीवन की प्रसंसा
आयकिस त राजा न उनकी परीक्षा लेन को बिचार करीन अना एक दिवस उनला सेवक द्वारा बुलावा
धाड़ीन अना उनला भिक्षा मा चावूर देईन संत बहुत प्रसन्न भया कवन लग्या महाराज मोला तुमी
असोच कृतज्ञ करत रहो l घर आयस्यनी आपरो
पत्नी सरस्वती जवर देय देत होता l जब चावुर बेचन को बेरा उनला
बारीक बारीक हीरा दिस्या पटकन बिचारिस की अज भिक्षा मांगन कहान गया होतात जीl
संत कसे राजमहल
गयव होतो त सरस्वती न वय हीरा उड़कुड़ा मा फेक देयीस l दुसरो दिवस
जब राजमहल मा भिक्षा मांगन गया त उनको मुख पर हीरा जसी चमक होती राजा न चावुर संग हीरा
देय देइस असो लगभग सप्ताह भर चलेव l राज कसे राजगुरु ला तुमी
त सांगत होतात की इनको जीवन लोभ मुक्त से पर मोला त गड़बड़ लग रही से राजगुरु कसे महाराज
आमी उनको घर जबीन अना देखबिन राज आन राजगुरु संत पुरणदास महाराज की कुटिया मा गया त
देखसेत की उनकी पत्नी चावुर बेच रही होती अना गोटा संग हीरा इनला बी उड़कुडा मा फेक
रही होती राजा कसे की तुमी हीरा इनला फेक रह्या से सेव l
सरस्वती कसे
महाराज ये तुमरो लईक हीरा होय सिकसेत मोरो लईक त सब माटी मोल आय जी या बात आयकन रजा
सरस्वती जी ला नमन करिस अना उनको चरण मा आय गया l
बोध: लोभ मुक्त अना सादगी पूर्ण जीवन व्यक्ति ला महान बनावसे l
प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु पो. दासगांव ता.जि.गोंदिया, मो९६७३१७८४२४
***********************
2. हातभर ककडी , बितभर बेल
राजेगावको सुखदेव बिसन्या च्यार एकरको कास्तकार. घरवाली , एकटुरी अना एक नहान टुरा असो सुखी परीवार. सुखदेव बिसन्याकी
घरवाली सगुणा बाई. सगुणा बाईला बितभर रहेवत् हातभर सांगनकी आदत ! कोणतोबी काममा तुळ्
पुळ् करनो अना बढाई मारनो वोको स्वभावच होतो. घरवालीक् येन् स्वभावलक बहुतबार सुखदेवला
खाल्या मान करनो पळ्. येकंशिवाय वोकंजवर दुसरो ईलाजच नोहतो. सगुणाबाईक् येन् स्वभावलक
वूनकी सखीगोई परीचित होती. पर नवो जाग् येकी बढाईखोर बात् सबला सच्चीच लगत. वंज्याग्
सगुणाबाईको तोरा देखनलायक रव्.
एकघन गावमाच शिवशंकर भाऊक् घर् बेटिको बियामा सगुणाबाई अहेरक् जेवणला
गयी. संगमा बाईकी सखीगोई होती. नविन पाऊनी देख वहान सगुनाबाई पोथी बाचन बसी.
"आमर् कुटुंबमा बाई कोणतोबी काजकारण होसेत् अहेरला बसनेवालयीनको अहेर पोताईनमा
माव् नयी बाई !" जवर एक पावणी बसीती. वा बोलनला जरा मुजोरच होती. वोन् सगुणाला
पोथी बाचन देयीस अना कवन बसी , "सगुणाबाई , तुमी अहेरला आयात ना ? मंग् अहेरत् मंडावता नही दिस्यात. अहेरवाला मांडोमालक उठबी गया. अहेर करनला
आयात का सिर्फ भात खानलाच आयात !" भयी सगुणाबाईकी बोलती बंद. "तुमीच अहेर
नही करोत् कहानलक भरेत पोता !" सगुणाबाई दबकच गयी. का बोलनको येव वोला सुचेवच
नही. सगुणाबाई पाणी पिवनक् मिसलक दुसर् कोनटोमा जायस्यान बसी.
सुखदेव बिसन्या आपल् घरवालीक् येन् बढिईखोर स्वभावलका परेशान भय गयेतो.
पर कसाईक् खुटला बांधी सेरी करेबीत् का ? नशिबमा आयेव भोग वोला भोगनोच होतो. आता सुखदेवकी मोठी टुरी बबली बियाला आयीती.
बबलीसाती टुराकी खोज रिस्तेदारीमा अना रिस्तेदारीक् बायराबी चालु होती. टुरीन् बारावी
सिकस्यान शाळा सोळीतीस. एरोज वूनको एक रिस्तेदार टुराको इतल्ला धरस्यान आयेव. टुरा
डिवटीवालो होतो. वोला बी. एससी. टुरी पायजे होती. डिवटीवालो टुरा देख सगुणाबाई बीतभरकी
हातभर सांगन बसी.
माहातीन् टुरीला देखीस अना वू शिक्षण बिचारन बसेव , "बेटा , केतरोक कागज सिकिसेस
?" महातीको पूरो नही होयत् सगुणाबाई कवन बसी ,
" आमरी बबली , आब् बी. एस. सी. सिक रयी से.
सामने साल् पुरो होयजाये." सगुणाबाईकी बात आयकस्यान माहाती खुश भयेव. " दुय
रोजमा टुराला टुरी देखन पठावूसु." असो कवत वू चली गयेव. माहाती घरलक निकलताच सुखदेव
सगुणाबाईपर चिल्लानेव , " अवो अड्री , आपली बबली बारावी सिकीसे. तु वूनला
बी. एस. सी. सांगसेस. तोला बी. एस. सी. को मतलब तरी समजसे का ?" " चुपचाप रवो. मोलाबी मालुम से. एकघन बिया भयेव मंजे कोणी नही बिचार् शिक्षण
!" सगुणा आपलो हेका पुरावन बसी. सुखदेव बिचारो चुपचापच बसेव.
दुय रोजमा माहाती टुराला धरस्यान टुरी देखन आयेव. टुरी पूर् गावमा एक
नंबर देखनी होती. टुरान् टुरीला देखता बरोबर पसंद करीस. मयनाभरमा पायलगनीबी भयी. सगुणाबाई
टुरीक् बियाक् तयारीला लगी. सगुणाबाई खुश होती. " देख्यात मोर् अड्रीको दिमाग.
भेटेव का नही डिवटीवालो जवाई." सगुणा सुखदेवला कवन बसी. सुखदेव बिचारो चुपचापच
! वोलाबी डिवटीवालो जवाई भेटेकी खुशी होतीच. पर बी. एस.सी. को भेव वोक् मनमा होतोच.
सगुणाबाईत् हवामाच उळान बसी. वा जित् उत् जवाईक् पगारपान् बार्यामा अव्वाकी सव्वा
फेकन बसी. आता वोको सांगनोच असो काही रव् का पुळकोला खरोच लग्.
एकरोज फोनपर बोलता बोलता जवाईन् बबलीला बी. एस. सी. क् बार्यामा बिचारीस.
बबलीलात् बी. एस. सी. को नाव ना गाव नोहतो मालूम. बारावी सीकी टुरी का सांगे बी. एस.
सी. को. तब् जवाईला शंका आयी. वोन् बबलीला खोद खोदस्यान बिचारीस. तब् बबलीला खरो खरो
सांगनो पळेव. बबली बारावीच सिकी से येव समजेपर
जवाईको पाराच सरकेव. वोन् तुरंत माहातीला फोन लगायस्यान खरी खोटी सुनाईस. माहातीलाबी
आयकेपर धक्काच बसेव. वोन् सुखदेव बिसन्याला फोन लगाईस. माहातीको फोन आयेपर सुखदेवबी
घबराय गयेव. माहातीलाबी सुखदेवक् दबकत दबकत बोलनोपर शंका आयी.
तातातुळ दुसर् रोज माहाती ,जवाई, बियायी अना दुय रिस्तेदार सुखदेवक् घर् आया. सगुणाबाईबी
असा अचानक पावना आया देख अचंबामाच पळी. पावनाईनको चाय पानी होयेपर जवाईन् बबलीला बी.
एस. सी. का कागजपत्र मांगिस. आता वा बारावीक् वर्या सिकीच नोहती त् काहानलक बी. एस.
सी. का कागजपत्र आने. " सुखदेव भाऊ , तुमीन् आमला फसायात.
फसावनला आमीच मिल्याता ?" सुखदेव काहीच नही कय सकेव. जवाईन्
वाहानच बिया तोळीस अना गुस्सामाच वाहानलक निकल गयेव. असो अचानक बबलीको बिया टुटेलक
वोक् पाय खाल्याकी बारूच सरकी. वू डोस्काला हात धरस्यान मुंडाला टेकस्यान बसेव. घरमा
बबली मायको गरो धरस्यान रोवन बसी. आपल् टुरीकी असी परिस्थीती देख सगुणाबाई सरमक् मारे
काहीच बोलबी नही सकी. आता वोला खुदकीच लाज लगत होती. पर समय निकल गयेतो. शोक करनोशिवाय
वोकंजवर काहीच चारा नोहतो.
बोध - आपल् जवर से वोकंदून जादा (अव्वाको सव्वा) सांगेलक आपलोच नुकसान
होसे.
लेखक - गुलाब रमेश बिसेन ,
मु. सितेपार , ता.
तिरोडा , जि. गोंदिया ४४१९११
मो. नं. 9404235191
*********************************
3. एक घर की कहानी
एक घर मा माय-बाप, दुय
टुरा,दुय बहु अन नाती- नातीन रवत होता. वोन घर मा सबला गलत बातला
बढ़ावा देन की आदत होती. पर दुय बहु मा असी आदत नहोती. पर नहान बहु मा एक बुरी आदत
होती, सयपाक बनावता बनावता गरम गरम तुडपुडो आपरो साठी निकालके
ठेवन की आदत होती पर मोठो बहु मा असी काहीच गलत आदत नहोती. वा हमेशा टुरू-पोटू इनला
अच्छो ग्यान देत होती, वा हमेशा सांग मोठो इनको मान करन,
उनला जवाब नहीं देन, तब घर का सब कवत भय गया का
वय मोठा,उनला का समजसे?... जब मोठी बहु
कव बेटा जास्त बहार नहीं खेलन, पढ़ाई करन तब घर का सब कवती खेलन
दे ना आब कोनसी ड्युटी करनार सेती. मोठी बहु कव कोनी संग मरा पिटी नहीं करन,
तब वय कवत येला मारेती त या चुपचाप देखे का,असा
हर गलत बात ला बढ़ावा देत होता. तब मोठो बहु ला लग्यो की मी अलग होवू तबच मी आपलो बच्चा
इनला अच्छा संस्कार देय सकु. तब मोठी बहु आपरो परिवार ला धरके अलग भय गई.
तब वोन सोचीस
का आता तरी मी आपरो हिसाब लक आपरो बच्चा इनला ग्यान देवू. वा हमेशा आपरो टुरू पोटुइन
संग दोस्त सारखी रव. वय हमेशा सामने बढ़े पाहिजे कयके उनको प्रोत्साहन बढ़ाव. आपुन
केतरी भी तकलीफ मा रहे तरी सब संग हासके बोल. पर वोको पति ला या बात काही समजतच नहोती.
टुरू पोटू पढ़ाई करत तब वोको पति अधिक मोठो
आवाज करके टीवी देख. सकारी पढ़ाई सती उठत त पती कव मोरी जप खराब होसेे इस्कूलमा कार्यक्रम
होत तब टुरू- पोटू तयारी करत त कव काम धंधा सेती का नहाती तुमरो मास्टर इनला असो बात
बात पर लक पति-पत्नी को झगडा होय जात होतो. कई बार पत्नी पति ला कव अव टुरू-पोटू इनको
सामने असा नहीं बोलन अच्छा गुन हमेसा देनों पड़से, गलत गुन खुद सीख जासेती, तब पति
कव अच्छो अन बुरों मला नको सांगुस, आपरो पढ़ाई को ज्ञान मला नको
देवूस. वोको पति ला कभी सही गलत की पहेचान भईच नहीं. वू कभी पत्नी ला समजन की कोशिशच
नवतो करत. टुरू पोटू मोठा होन लग्या तसाच इनका झगडा भी बड़न लग्या. एक दिन पत्नी कसे
मी जेतो टुरू पोटू इनला संभालन की कोशिश करूसु वोतो तुम्ही बिगड़ावसेव बहोत भयो,
मोरोमा आता झगडा करन की ताकत नहाय मी तुमरो संग अलग होय जासु,
मंजे रवन एकटा ना जसो करूस्या लगसे तसो करन ना बोलन.
आता पतिला लग्यो मोरो
जोर चलनार नहाय त पति कसे अज पासुन तु जसो कवजो तसोच मी करू. कहीं दिवस साजरो लक रवन
लग्यो , पर कसेती ना जेको मा जन्मजात गुनच
खराब रहेती वू तरी का करे भगवान न वोला ना समजच बनाईस त वोको फर्ज निभायीस अखी वू गलत बात पर जोर देन लग्यो तब पत्नी ला समज़ मा आय
गयो .......
ग्यानी बात करसे चांद पर जानकी, अज्ञानी बात कर से आंबा पर जानकी,
केत्ताकच दिवो जरावो ज्ञान
का, अगर बुद्धिच होय जाये जाम इंसान
की।
जो इन्सान समजन की
कोशिश नहीं कर वोला समजावन को काहीं फायदा नहाय.
✍️सौ. लता पटले
दिघोरी, नागपुर
*********************************
4. मन की शांति
कंठिलालाजी
एक लहानसो किसान होतो।मेहनत करके आपलो परिवार को पालनपोसन करत होतो। एक चीज ओला जान
दून प्रिय होती। वा मंजे ओको अजी न ओला देइतीस वा हातला बांधन की घड़ी। घड़ी पुरानी
होती पर पर ओला वूं रोज हातला बांधत होतो ।
एक दिस की बात आय ,ओकी घड़ी कहीं दवड गई। बहुत धुंडिस पर ओला कहि नहीं
मिली । घर भर धूंडिस।आखिर मा ओला लगेव की टुरू पोटू की मदत लेये पायजे ।मुन वोन सबला
बुलाईस। सब घड़ी ढूंढन बस्या। कोनी फरतळा,कोणी आलमारी मा ,कोणी पोता को मंग, पर कोणीला घड़ी नहीं मिली।
तब राजू वाहान आयेव,ना सबला
बाहर जानला सांगिस। अना घरमा गयेव.शांती लक बसेव।,,,,,खिनभरमाच
घड़ी लेकर राजू बाहर आयेव। कंठीलालजीला मोठो आश्चर्य भयेव , मुन
उननं बिचारिन," येतरो जल्दी तोला घड़ी कसकस भेट गई"।
राजू न सांगिस," मी घरमा गयेव,सब सामसूम होतो, कान
लगायकर एकाग्र चित्त लक अायकेव त घड़ी की टिक टिक आयकु अाई,संदूक
को मंग पड़ी होती। रामू की हुश्यारी देखकर कंठीलालजी खुश भया ना ओला सौ रुपया इनाम
देंइन।
बोध : जसो कमरा मा की शांति
घड़ी ढूंढनला आसरो भई तसिच मन की शांति आमला जीनगी साती आसरो होसे। दिनभरमा खुद साती
समय काहड़कर शांति लक मन को अंदर की आवाज आयके पायजे।। तबच जिनगी साजरो
लक जग सक सेजन।
✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी
***************************
5. माय की माया
एक गावमा प्रकाश नावको टूरा रव्हत होतो. ओक अजी को लहान पनच देहान्त
भयेव होतो. उनकं जवळ खेतीबाळीनोहती.
प्रकाशकी माय मोलमजुरी कर, दुसरक घर बर्तनभांडा
घासत होती.मोठ मेहनत लका प्रकाश ला स्कूल मा
शीकावत होती. प्रकाश चांगलो शिके पाहिजे मनून कभी कभी वा उपासी रव्ह, पर
प्रकाशला काही कमी करत नोहती. प्रकाश भी खुप मन लगाय कर शिकत होतो. काही दिवसमा ओला इंजिनिअर
की डिग्री भेटी ना चांगल कंपनीमा नौंकरी भेटी.
प्रकाशक मायन ओको बीह्या करीस
ओला टुरी नौंकरी वालीच भेटी.काही दिवस खुप सुखमा
गया. प्रकाश कर एक टुरा भयेव.घरमा सब चांगलोच चांगलो भयेव.प्रकाशकी बायको सकाळी
च ऊठ. सकाळ का काम करशानी टुराक स्कूल की तयारी कर. मंग सब काम आटपशानी आपल नौंकरी
पर जात होती. प्रकाशक मायला खासी भयीं ओकलक ओक बायकोला त्रास होन बसेव वा प्रकाश ला कसे एकत या बुळगी रहे
नहीत मी रहून. प्रकाशला बायको ना टुरा को बिचार
आएव. ओन मायला जंगलमा सोळनको बिचार करीस. मायला कसे माय तोला यात्रा
पर जानको सेना मोर संग चल.मायला लेकर नीघेव.
रस्ता लका ओकी माय बाजूक झाळका पाला तोळ ना रस्ताला फेकत होती.जंगलमा
प्रकाश कसे माय तू धकी रहेस,झाळक
खाल्या बस मी जराआऊसू.माय समज गयी का बेटा मोला सोळशानी जाय रहीसे. तरी बेटाला कसे
मोला सोळशानी जासेस पर मी जेण रस्ता लका झाळकापाला टाकी सेव ओनच रस्ता लका जाज़ो मनजे
रस्ता भुलनकोसनही. केतरी या माय की माया.
सिख :- बेटा केतरो ही वाईट
रहे पर माय कभी बेटा को वाईट होय पाहीजे अशी बिचार नहो कर.
✍️डी पी राहांगडाले, गोंदिया
6. दगाबाज़ मगरमच्छ
नदी को काठ पर जाम्बूर को झाड होतो। ओन झाड पर बंदर रव्हतो होतो। नदी
को पानी मा मगरमच्छ रव्हतो होतो। दुई मा मोठो संगीपना होतो। झाड पर रव्हनो वालो बंदर
स्वादिष्ट फर तोडस्यानी आपलो संगी मगरमच्छ ला खानसाठी देत होतो। बंदर कनलक फर खान को
काम बहुत दिवस तहक चलत रह्यो। पन एक दिवस मगरमच्छ को नियत मा खोटो कुटील बिचार समायो।
अना मन को मन मा कव्हन लग्यो येतरा स्वादिष्ट फर खानवालो बंदर को कलेजा केतरो स्वादिष्ट
रहे? ऐको कलेजा खाये पाहिजे। मगरमच्छ
ला एक उपाय सूझ्यो।
एक दिवस आपरो संगी बंदर ला कसे, का संगी.. तोरो भौजी न् खूप चवदार पकवान बनाईसेस! तोला
जेवन साठी बुलाईसेस।बंदर न् आपलो संगी को सांगनो पर भरोसा करीस, अना आनाकानी करत् करत् संग मा जान साठी तैयार भयो। मगरमच्छ को पाठ पर बंदर
बस्यो अना नदी को पानी मा एक सेल्हा लक दूसरो सेल्हा पर जान लग्या। अर्धोच रस्ता पार
करनो पर मगरमच्छ आपली करवट बदलने लग्यो। बंदर ला भेव लग्यो अना कव्हन लग्यो,
काहे संगी करवट बदल रही सेस।
तब् मगरमच्छ न् कहीस आता तोला असली बात सांगनो पड्ये?
मी तोला तोरो कलेजा खानसाठी आनीसेंव। तब् तडकन हुशार बंदर न् कहीस संगीत
बस् येवडीसी बात से! मीन त आपरो कलेजा सुखावन साठी झाड परच् ठेय देई सेंव। मगरमच्छ
बिचार मा पड गयो।
पन बंदर कसे... संगी बिचार की काहीच् बात नहाय। वापस चलबन अना झाड पर
लक कलेजा आनबन। मगरमच्छ खुश भयो, अना
वापस बंदर ला नदी काठ आनीस। बंदर न् उडी मारकर झाड पर चढ्यो। अना कहिस... मुर्ख संगी,
कबी शरीर लक कलेजा अलग रव्हसे का? तोरो मन मा कुटीलपना
ओडखस्यान मीन् आपरो हुशारी लक काम कर्यो अना आपलो जिव बचाय लेयो। अज को बाद मा मोरो
तोरो संगीपना नहीं जम सक्।
तात्पर्य :कुटिल बिचार लक
दगा होन को भेव लक बचनो पाहिजे?
✍️सी. एच. पटले गोपाल नगर नागपूर ।मो. 7588748606
**************************
7. हंस अना घुबड
एक बार एक हंस ना
हंसीनी मानस सरोवर ल् भटकत भटकत एक विरान जागा पर पहुँच गया. वु पुरो उजाड एरिया होतो.
ना वहॉ हरियाली होती ना जंगल ना ढंग को पानी. वोन् एरिया मा उनला शाम भय गई. रात मा
वहॉ ल् बाहेर जानो भी मुश्किल होतो. मून वोय एक वारेव झाडपर रात बितावन साती ठह-या.
वोनच् वारेव झाडक्
दूसर् खांदा पर एक घुबड बसेव होतो. वु राती बीच बीच मा चिल्लात होतो. वोन् कारण ल्
हंस अना हंसीनी ला झोप नाही आय रही होती. हंसीनी न् हंस ला कहीस येतरो उजाड एरिया ना
या घुबड की आवाज क् कारण ल् झोप बी नही आय रही से.
हंस न् उत्तर देईस
जेन जागा असा घुबड रव्हसेती वु एरिया उजाडच् रव्हसे. अज की रात बितावनो से कसो बी चुपचाप
टाईम पास कर. हंसीनी ना हंस सकार होन् की रस्ता देखन लग्या. धीरू धीरू सकार भयी.
सकार होयेपर
वु घुबड उनक् जवर आयेव. ना कव्हन लगेव. हंस भाई मोर् कारण तुमला राती तकलीब भई वोक्
साती माफ कर देव. हंस न् कहीस काही बात नही. अना हंसीनी संग जान बसेव. तब घुबड न् हंसला
कहीस, 'अरे, हंस
भाई, तू मोर पत्नी ला कहॉ लिजाय रही सेस. हंस ना हंसीनी ला एकदम
झटका लगेव.
हंस न् कहीस या
हंसीनी आय ना मोरी पत्नी आय. पर घुबड नही मानेव. वोन् हंसीनी कोनकी पत्नी आय येको फैसला
करन साती पंचायत बुलाईस. आसपास का सब प्राणी पंचायत मा जमा भया. हंस ना घुबड दुही न्
हंसीनी साती दावा सांगीन. दुही की बात सुननो क् बाद बाजू मा जायस्यार पंचायत बिचार
करन् बसी.
पंचायत मा बिचार
भयेव की, हंस को कव्हनो बरोबर से. हंसीनी
हंस कीच पत्नी आय. पर हंस यहॉ को रव्हनेवालो नोहोय. वुत अज चली जाहे. अना घुबड आपल्
संग रहे. मून पंचायत न् सर्वसम्मति ल् फैसला घुबड क् पक्ष का सुनाईस कि हंसीनी घुबड
की पत्नी आय.
हंस हंसीनी ला
बहुत दुख भयेव. पर का करता परदेश मा राजा दुबला. हंस लहानशो तोंड करस्यार जान लगेव
तब घुबड न् वोला बुलाईस ना कहीस, "हंस, या हंसीनी तोरीच पत्नी आय तू येला आपल् संग लिजाय."
हंस ला बहुत आश्चर्य भयेव. वोन् घुबड ला कहीस कि हंसीनी साती तून् पंचायत बुलायेस.
पंचायत न् तोर् पक्ष मा फैसला देईस. अना आता तू मोला हंसीनी मोरी पत्नी आय कसेस्. मंग
पंचायत कायसाती बुलायेस.
घुबड कव्हन बसेव, राती तून हंसीनी ला सांगेस् की यहॉ घुबड रव्हसेती मून
येव एरिया उजाड से. पर असो नाहाय. यहॉ सच्चाई ला मानने वाला नाहाती मून येव एरिया उजाड
से. सबला मालूम होतो कि हंसीनी हंस की पत्नी आय पर आपलो एरिया को समझ स्यार सबन् मोर्
पक्ष मा फैसला सुनाईन. तसोच मोर् जात को, मोर् गाव को,
मोर् जवर को असो देखकर फैसला होसेती. ना पंच बी चुन्या जासेती. लायक
की कदर नही होय. मून येव एरिया उजाड से.घुबड रव्हसेती मून नही. हंस ला वोकी बात समझ
मा आय गई. ना वु हंसीनी संग वहॉ ल् आय गयेव.
बोध - कोणतीबी फैसला सच्चाई ला धरस्यार होये पाहिजे . वोक् मा जात, धर्म, एरिया क् कारण भेदभाव नही
होये पाहिजे.
✍️ चिरंजीव बिसेन
परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
*********************************
8. सफलता की कुंजी
कोरोनाक् लाकडाऊन मा राजूकी कंपनी बंद भयी. पोटपानी को सवाल होतो. लाकडाऊन
बढेव त् जीनो मुश्किल होये असो राजुना ना वक् घरवालीला लगत होतो, मनुन गाव् जानसाती फटपटीपरा आपल् घरवाली ना एक सय सालक्
टुरासंग गाव् जानको बिचार करीन. पुलिसवालक् भेवलका मनुन सकारी सात बजेच घरलका निकल्या. दुय तीन किलोमीटर गया रहेत त् उनकी फटफटी च पंचर
भयी. सकारी सकारी पंचर सुदरावने वालो भेटनो मुश्किलच होतो. उनला बिचार आयेव. गाव् जानको
बिचार सोड देईन ना गाडी ढकलत ढकलत वापसी भया. राजुन् एक चौक मा घडीभर आराम करीस.
वन् चौक मा एक भाजीपालावालो बसेव होतो वहानी भाजीपाला लेनसाती भीडच
होती. राजून आपल् घरवालीला कहीस का आब् गाव्
जानकी मोड पडी, आब् गाव जानको नही.
लॉकडाऊनमा भाजीपाला बिकबिन. सकारी सकारी पुलिसवाला बी नही रवत, सकारी ६ बजेपासून १० बजेवरी धंदा करबीन. धंदा करनला काय की लाज. वक् घरवालीनबी
हो कयीस. तीनही जन घर गया. राजुन बजारलका तीन
हजारको भाजीपाला आनीस. दुसर् दिवस सकारीच एक चौकमा भाजीपाला को दुकान मांडीन. दुयी जनला अटपटेवसारको
लगत होतो. खुशीकी बात या भयी का दुय घंटामा सप्पा बिकरा भयेव. पयले दिवसच सातसौ रुपयाको
मुनाफा भयेव होतो. उनकी हिम्मत बढी. आब् दुय महिनामा कंपनीक् पगारदुन डबल फायदा भयोव होतो. राजुना वकी घरवाली आब् नव् व्यवसायमा खुश होता.
हिम्मत नही हारीन. नवो व्यवसायमा साजरीच कमाई करन बस्या. गाडी पंचर भयी नही रवती त्
नवो व्यवसाय चालू नही करी रवतीन. राजू ना वक् घरवालीला संकटमाबी सफलता की कुंजी भेटी.
गाडी पंचर भयी मनुन राजू ना वक् घरवालीन् देव बाप्पाला धन्यवाद देईन.
✍डॉ.शेखराम परसराम येळेकर नागपूर २५/८/२०२०
9. कर्मको फल
गणपतका मायबाप बिमारीलं लहानपणचं स्वर्गवासी भया होता.तब गणपत दस सालको होतो
.एकटोच होतो .ना बहिन ना भायी.आता सब जीवनकी जबाबदारी ओकपर आयी होती. जेला स्वयंपाक
करनकी अक्कल नोहोती ओला स्याग_भाजी बनावनो. एक सत्व परीक्षा होती.बापकी
एक एकर जमीन ना चांदिका बिस कलदार रूपया .याचं मालमत्ता होती .
रुपया मोहलाकं पाटील काकाजी जवळ ठेवन देयीस ना आपल़ो खेतीको काही काम .कभी बारमाही नौकरी करश्यानी आपलं जीवन
की गाड़ी ढकलत होतो.
चवथी पासुन शाळा बंद भय गयोव होतो.कभी हमाली करत होतो.पर कोनिक सामने
पैसा साठी हात पैलावत नोहोतो.
गणपत आता एकवीस बर्षाको भयोव बिह्या करनको बिचार .टुरी देय कोन माय नहीं ना
बाप नहीं .पर मोहलावालकं सहकार्यलं टुरी देखश्यानी वर्गनी ना चाउर जमा करश्यानी थाट
माटलं बिह्याको कार्य भयोवं टुरी गणपत सारखी कष्टाळु होती .आता धिरू धिरू स्थिती सुधरन
लगी.खेतीमालं फसलं काढन लग्या बारा महिना चाउर लेत नोहोता.
गणपत देखता देखता तिनं टुराको बाप भयो व मोटो पुरा काम करन लगेव.बाकी टुरा
शिकत होता.मुहुन खेती, मजुरी,
रोजगार हमी ,असो
काम करता करता दुसरो टुरा डाॅक्टर भयोव ना तिसरो देशसेवा करनं शैनिक भयोव आता अज सबका
घरदार भया चांगलं घरकी टुरी भेटी.अज सब चांगलो जीवन जगत रह्या सेती.आपला कर्म आपला
भाग्य बदलावसेती.
शीख_जशी परिस्थिती तसो बदलो
ना जीवन जगो
कोनतोही काम करनकी शरम नोको धरो .चांगलं कर्मलं आपला भाग्य बदलसेती.
✍वाय सी चौधरी
गोंदिया
***************************
10.
ससा अना् कासु
एक् जंगलमा् ससा अना् कासु रवत होता.उनकि बाक्की दोस्ती होती.एक दिवस
तराक् पारीपरा दुइजण भेट्या .इतन -उतनकी गोस्टी करीन यतरोमाच एक माणूस वहानी आयोव
.वला देखस्यान ससा का कसे ",कासु
,यन् मानसयन् आमरी ससाकी पुरी जात बदनाम कर डाकीन,एक ससाका पयलेक् जमानोमा् वन् कासुसंग
हर गयेव ,वनच बातला आबवरी शाळा काँलेजमा् रटसेती".
मंग कासुन् कइस ",उनकि
का बात से.यन् धरतीपर उनकोच राज से उनकि बराबरी आमी नइ कर सकबिन"
ससाला खुमखुमी होती बाणी लगावनकि.वन् कासुला कइस धावनकि सरयत लगावबिन.कासु
कसे ",रवन देना गा तोरी शक्ती
अलग से मोरी अलग से",गइ बात गणपतसंग्".पर ससो काइ मान
नयि कासुला मनाइस धावनसाठी.ठिकाणबि वनच ठराइस.तराक् पारीपासून कनारक् अमराईमा पयले
कोन जासे ??यव ठरेव् .
सरयत चालू भयि ससा खुशीलक्
धावत परत गयेव ,मंग देखच जासे अना् पराय
जासे.कासु बिचारो हरूहरू जात होतो.अमराइमा् जानसाठी थोडो गवतको रान होतो .काइ कुतरायन्
ससाला देखिन अना वय धाया. ससा खुब परेव अना् एक बिलमा् अंदर छुप गयेव .कुत्रा मंग पराय
गया.ससो पुरो थकेव होतो अना् घबराय गयोव होतो.वन् बिलमा् मस्त आराम करीस बाक्की झोपबि
लेइस .तबवरी कासु आय गयोव .अमराइ जवर होती. पर एक मोठो नालो वहानि .पार करनो पडत होतो.
नालोमा् बाँधको पानी बहत होतो.कासु तयरकन गयोव वन् बाया.
ससोला जाग आइ बिइतबिइत बाहर आयेव पुढं गयोव वला नाला दिखेव.नालामा्
पानी होतो .वला तयरता आवत नोहतो कासुवानी. ठिकाणठरावनमा् चुक भयि होती .मनमा् रोवन
लगेव्.वतरोमाच कासुन् अमराइमालक ससाला आवाज मारीस ",ससा दादा$$ मी इतन सेव्".ससा
फस गयेव .शक्ति रयकनबि जागा ठरावनक् भारी ससानच घाइगळबळमा चुक करीस.कासुच जिकेव. तात्पर्य--कोणतीबि
सरयत विवेकलकाच लगाय् पायजे.
✍पालिकचंद बिसने
सिंदिपार (लाखनी)
*********************************************************************
No comments:
Post a Comment