कसो ना मुसोच्
अजपासुन रामू की स्कूल चालू होनकी होती।पर अज ओको पोटमा सकारपासुनच दुखत होतो। आपलो आईंला घड़ी घड़ी
बुलावत होतो "अाई मोरो पोटमा कसो ना मुसोच लगसे।
अजी रामू का बाबूजी देखो ना ,मी डॉक्टर ला बुलाई सेव।
रामू की अाई भी मोठ्यानं चिंता मा होती.बाबूजी भी बीचारन बस्या कसो लगसे ,गुद्गुड लगसे?, का मुडडा मारख्यान आवसे?, त रामू बस , कसो ना मुसोच लगसे की रट लगावत रहेव.
वोत्तो माच डॉक्टर आया ना बीचारन बस्या .पर उनको काई समझ मा नहीं आयेव.
तब बाहर लक रामू को मास्तर जी की आवाज आई. रामू को बाबूजी न ऊनला अंदर बुलाईन. तब मास्तर जी न भी रामू ला बीचारिन,पर ओको एकच उत्तर….कसो ना मूसोच लगसे तब मास्तर जी को ध्यान मा आायेव, उनन रामू ला बीचारीन, तोरो गृह कार्य भयेव का स्कूल को ….. अना रामू घबरानेव,ना सांगीस,,,,,नहीं, नहीं पुरो नहीं भयेव….
मास्तर जी न सांगिन,रामू न छुट्टी को दिनमा मस्त खेलीस कुदिस,ना गृह कार्य नहीं करीस,,,, अज पासून स्कूल चालू होनकी से …..मून भेव को माऱ्या एको पोटमा कसोना ना मुसोचं लगण बसेवं…..सब हासण बस्या……
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
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