सुंदर दिन की सुंदर सुरुवात,
आवसे जब रात क् बाद पहाट.
नवी उमंग, नवी तरंग, नवी आस,
आनसे सूर्य को उज्ज्वल प्रकाश.
काली रात बीतन क् बाद आवसे दिन,
पक्षी बजावसेत आपली मधुर बीन.
पक्षी चारो क् खोज मा जासेत बाहर,
पर आपल् गुफा मा सोवन जासे नाहर.
आदमी बी आपल् दिन की करसे सुरवात,
जल्दी उठके जाने से इतन उतन की बात.
पहाटला उठेवल् समयपर होसेत काम,
दौडधूप होसे कम मिलसे दिमागला आराम.
प्रात:काल उठस्यार करो भ्रमण,
करसे शरीर क् रोग को दमन.
कहावत से सुबह शाम की हवा,
डॉक्टर रव्हसे दूर, लाखो की दवा.
रचना - चिरंजीव बिसेन
गोंदिया.
साजरी कविता
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