अमराई
राखन कर फुफ़ाबाई।
गावखारी मा टोली रंगी
सब जमा भया मोरा संगी।
लकड़ी झोड़पा संग गोटा
लगावत नेम साजरो बटा।
गन्या को डाव बड़ो नेम को
आम्बा का झोंका डोलनको।
काकाजी की आवाज गजब की
आमरी सूट धाव खरयांन की।
लँगड्या आंबा की शौक अधूरी
बचपन की कहानी से सुनहरी।
बालपण को प्यार अमराई की जबानी
हर एक कि कहानी बड़ी सुहानी।
घोटी आंबा की मोठी बरसात
खूड़ी मा बटा झोंका नोहता मावत।
रायतो को आंबा ना का सांगू मोरो गाणा
पन्द्रह रुपया सैकड़ा ना पिकन को ग्रहाणां।
तपन की तपिश मा अमराई की दबिश
हिरवो गार हवा की बहार भोलो मन की आस।
बालपन होतो महान
याद आओ से छान
आमरी अमराइ
चल गा भाऊ नरेश आता अमरइ जावबिन
धर सकोटि आता कच्चो आम्बा आनबिन
नहान नहान सेती इत साजरो खट्टो आम्बा
जरासो तोड़बीन बाकी पिकनला राखबिन
बनावबिन चटनी अना मिट्ठो तीखो गोड़साग
पनाह बनावबिन अना मिटावबिन धुप ताप
आमरो अजी को हाथ का सेती सब झाड़
पिकोसेत आम्बा तबा सबला देसेजन धाड़
लगत आम्बा फरी सेती जी भाऊ इन साल
पीकोसेत त चोवोसेत हिवरो पिवरो लाल
गर्मी को दिवस की देखोसेजन आमी बाट
आम्बाचोर परासेत मिलसे अजी को आहट
केतरी साजरी अना मनमोहक से या अमरई
देसे सबला मीठो आम्बा अना ठंडी सावली
खेलन कूदन की से इता कन बातच नीराली
खेलता खावता लगोसे सबला प्यारी अमरई
ऋषि बिसेन
खामघाट(बालाघाट)
आंबा
एक पर एक झोका पर झोका
आंबा लटक्या सेत बाका
हरा हरा गोल लंबोटा
थोडा मिठा जरा खट्टा
देखता आंबा लार टपके
अंबराई मा घुसू लुपके छूपके
तिखट मीठ की बनायकन बुकणी
बडी मिठी आंबा की चटणी
अंबराई का आंबा खानो मा मज्जा
कडकडती तपन को प्यारो खाजा
कोयार पादरी चिप वालो आंबा
हे देवा कैरी तोडण बनाव लंबा
शेषराव येळेकर
आंबा की अमराई
याद आयी बचपण की|
बचपन की मस्ती
बहुत होती शरार् ती
चोर - चोर कर
आंबा खान की लत
होती बहुत शैतानी
बचपन की सैतानी मा
काही समज नव्हती
पण आता समज आय
रही से|
एक जोळपा मारू त
एक सिंगल आंबा कायला
खाली पड!
गुचा मा का आंबा कभी
खाली नहीं पड्या!
गूचा मा रहो त मजबूत रहो
एकटा रहयात त
आंबा सारखा खाली पडो!
खाली पड या आंबा मी
घर आणू!
मोरी आजी माय ओ की
मस्त मस्त चटणी कर|
मस्त से छाया बाई की
आंबा की अम् राई!
सिखाय साय र जायेत
आंबा का गु चा!
काहण भी रहो
समूह,संघटन मा
रहो|
🖋️ Chandrkumar sharnagat
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(हिरो होंडा)
लटालोम आंबा
अमरो आंगन मा से एक झाड,
करसेजन सब वोको बहुत लाड़ll
सावली देसे आमाल ठंडी गार,
बार आयी से अउंदा भरमार ll
लगी झोका की तोरण जसो,
स्वाद से येको खोबरा जसो ll
जरासो तीखो अना नोन मिलावो,
बारीक बारीक फोड़ी बनावो ll
आता आंबा को मज्या लेवो,
जरासी भेली मिलाय देवो ll
रायतो अना आमटी बनावो,
माच का आंबा सबजन खावो ll
रस रोटी संग सेवई बनावो आता,
घिवारी को पाहूंच्यार देवो आता ll
डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४
आंबा
आंबा की आमराई फरीसे बाका
सबआंग लगगयाआंबाका झोका
एक झोकाला आंबा सेती नवदस
देख शानी मन ललचासे बरबस
मोठोजात बुऴ ना लंबालंबा खांदा
उनक आऴपमा लपायजासे चांदा
लटालट पाना ना मोठोजात बार
ओक ओझो लका बग गयी डार
आंबा संग नोन तिखो की चटनी
लगसे सुरस जिभ ला देसे पटनी
आंबाको झाऴ सावलीको अंबार
ओकखाल्या उभो लगे थंडोगार
आंबाकी आंबटी ना रायतो बनाओ
भुजकर आंबा ना पम्हो भी खाओ
आंबाकी लकऴी चुलोमा लगाओ
या सुख शांती साठी हवन कराओ
आंबाक पानाकी तोरन बानायलेव
धर क दरवाजाकी शोभा बऴायलेव
आंबा को झाऴ केतरो से महान
कसेत फलको राजा करसेती गुणगान
डी पी राहांगडाले
गोंदिया
याद मोला आवसे
याद मोला आवसे, आंबा की अमराई।
लहानपण की रानू, बबल्या अना ताई ॥1॥
माय संग आमी, मामा गावं जाजन।
टुरु पोटु संग, कच्चा आंबा खाजन ॥2॥
दुपार को तपन मा, झोळपा आमी मारजन।
कभी कभी गोटालक, आंबा आमी पाळजन ॥3॥
दिवसभर झाळ खाल्या, सावली मा खेलजन।
जमा करशान आंबा, बराबरीमा बाटजन ॥4॥
कभी कभी राखणदार, आमला जब पकळं।
उठक बैठक करशान, कान आमरा जकळं ॥5॥
आमला घबराया देख, दया ओला आवं।
माफ करशान कवं, घर आता जावं ॥6॥
मामी घर आंबाकी, बनावं आमटी मस्तं ।
राती सब मिळशान, करत आमटी फस्तं ॥7॥
- इंजि. गोवर्धन बिसेन, बडेगांव (गोंदिया)
अमराई
(चाल: लकड़ी की काठी काठी का घोड़ा...)
ढोढी को किनारे, फैली अमराई
लटालोंब आंबा की का सांगू नवलाई
आयी आयी आयी घात आंबा खानकी आयी
लालालाला लालाला, लालालाला लालाला ॥धृ॥
घोटी शेंदरी गू-या, तेल्या रायत्या खोब-या
गोल्या किटलाई केरीका झोकळा लटु-या
लट्टक लट्टक लट्टक लट्टक
आयी आयी आयी बालगोपालकी कलपी आयी ॥१॥
नोन हिरोती बुकनी, पुळकी भरके चटनी
कड़म कुड़म करत फोड़ी तोंडमा पटकनी
कड़म कुड़म कड़म कुड़म
इरभर अमराईमा महातनीबेरा आयी ॥२॥
कच्चो खावो खाटो, माच चुसो मिठो
बजारमा कसोभी बिको रग्गड़ पैसा पिटो
रग्गड़ रग्गड़ रग्गड़ रग्गड़
पाहुणाको पाहुणचार रसकी सरबराई ॥३॥
आंबा फलको राजा, रानमा अगाजा
चैतमा कोयल की कूक करंसे गाजाबाजा
कुहू कुहू कुहू कुहू
चिप अना पाड़ खानको मयना आयेव मई ॥४॥
आमचूर आंबेवड़ी, चटणी गोड़कढ़ी
मुरांबा खटाई पन्हा रायतो की सुरपड़ी
सुर्रूप सुर्रूप सुर्रूप सुर्रूप
आमरस को संग खावो घिवारी सेवई ॥५॥
संकरित रसिला, कड्डा नरम ढिला
सबला भावत हर जातीका आंबा रंगरंगिला
चप्पक चप्पक चप्पक चप्पक
आंबाको नावलका सबको तोंडमा लार आयी ॥६॥
आंबा आयेव पाड़, पिक्या झाड़न झाड़
माच चुसो घोय वापी आयेव लाख्तखाड़
चुस्सूक चुस्सूक चुस्सूक चुस्सूक
फोलका ला फेको नोको खासेत भसी गाई ॥७॥
डॉ. प्रल्हाद र. हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
आंबा
बसंत बहार लक अमराई बहर गयी
आंबा की घात आई चलो संगी भाई
दुपारी तिपारी सब जन जाबं
संगमा दुयचार झोडपा बी धरबं
लट्टालोम्ब फरी सें सारी अमराई
आंबाराख्या रहे देखो करो नोको घाई
आंबा को झाड काळपट जाडसर
लंबूटा सेत पान हिरवट लालसर
झडेव बार हिवरी कैरी लग गयी
आंबाको झोकामा मिठी कोयार से लपाई
आंबा देखके तोंडला सुटेव पाणी
तोंडला लगावन तिखट मीठकी चटणी
आंबा धर झोरामा रायतो खुलं बनाये आई
चुरपकर खाबं आमटी वाढे मायबाई
पारा बांधिस आंबा नं कर मांगबं पना
बटकीभर रस पिवबं सेंवई टाकस्याना
हवा धुंदाडलक पडया आंबा बेचो सप्पाई
पिकेव पाड चोखन की मज्जाच औरकाही
आंबा को पान आड कोयल गावं सें
आंबा फल को राजा आय गुरूजी कवं
आंबावानी गोड रवबं सब संगीभाई
आता या एकजूट कभी तुटनकी नही
शारदा चौधरी
भंडारा
आंबा
बोळी को पार परकी आंबीन
तरा को पार परका काऱ्या भुऱ्या
झोळपा मार मार के आंबा पाळ
आमरो गाव खाती को टुरा भुऱ्या
कन्हारपरको बाघ्या आंबा
ढोढी वाली को कसलाया आंबा
सरसर चगके आंबा उतराव
सोनार की टुरी कारी रंभा
गीम को दिवस मा आव बडी मज्या
सीतोनी,झोऱ्या,बोरी,बासोळा
चीला पीला जाजन बाबुजी संग
अचार अना माच को आंबाको बचावन नासोळा
पोटखोली,देवखोली,अना पाटनपरका ढोला
आंबा को माच टाकत होता
घरभरका लेकरु सप्पाई
आंबाइनपराच रव्हत होता
आब फक्त यादच रह्य गयी
बीत्या दिवस वापस आवत नही
केतरा साल भय गया तरीबी
मी मामा को गावच नही गयी
✍सौ.वर्षा पटले रहांगडाले