Thursday, June 3, 2021

बचपन के खेल








नहानपनको यादगार खेल
कागजको डफरीको बाजा
                          
*खेल     लहानपनका*
*होता  मोठा फलदायी |*
*वय  नोहोता  खर्चिक*
*स्वास्थ रव्ह सुखदायी ||*

     मी नहान होतो तब कयी खेल खेलत होता. जसा  लगोरी, कबड्डी, खोखो, लंगडी, बिट्टीदांडू, काचकी गोली, सुरसुर काड़ी, नदी का पहाळ, लुकाछिपी, टायरको चक्का फिरावनो, सापसिळी, बालको दानालक चंगास्टा, घानमाकडी, कुची. असा खेल खेलता खेलता कब दिवस बुड़त होतो यको पत्ताच लगत नोहोतो. 

          पर मोरो नहानपनको सबदुन यादगार खेल म्हणजे कागजकी डफरीको बाजा. उनारोको सुट्टीमा मोरा फुपेभाई बड़ेगाव आवत. उनको संग फुटेव  घड़ाको तोंडपर कागजला भातलक चिपकावत होता. वनं डफरीला ताव आवनसाती पंतुनाको खाल्या चुलोपर सेक देत होता. मोरा फुपभाई अना मोहल्लाका दुयच्यार संगी मिलकर नवरदेव नवरीको खेल सुरु होय. आमरो बालमनन् सामाजिक कार्यक्रममा बाजा देखी होतीन असा कार्यक्रमकी प्रतीकृती प्रत्यक्ष खेलको माध्यमलक  साकार करनको प्रयत्न सुरु होय. येन खेलमा कपड़ाका नवरदेव नवरी बनावत होता अना मंग सुरु होय डफरी बजावनसाती खिचातानी. यकोमाच कभी कभी डफरी फुट जात होती अना खेल तितीरबीतीर होयशान खतम होय जाय.
    
    असो खेललक टुराईनमा तत्परता, चपळाई, नेतृत्व करनकी क्षमता, एकाग्रता, संघभावना बढ़ अना स्वास्थ भी तंदुरुस्त रव्ह. विशेष म्हणजे हे खेल अजिबात खर्चिक नोहोता. पण काळको ओघमा घरदारको सामनेका आंगन गायब भय गया. आता घरघरमा टीव्ही अना हातहातमा मोबाइल विराजमान भय गया. असा केतरा तरी खेल येन दुनिया लक आता गायब भय गया.



इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया 
       मो. ९४२२८३२९४१

  कवललकी बंडी
 (नहानपनको खेल)

 गुलाब बिसेन 

नहानपन येव जीवनको बहुतही सुनहरो काल रवसे. खेलो, कुदो, मस्ती करो येकंमा दिवस कसो सरजासे पताच नही चलं. सुट्टिक् रोज दिवसभर खेल बिगर काही नही सूचं येन् उमरमा. घरमक् टुरूपोटुनको खेल देखस्यान सबलाच आपल् आपल् बचपनकी याद आवसे. आबक् टुरूपोटका खेल अना वूनका खिलोना अलग सेती. वर्तमान कालमा बजारमा येकदून एक खिलोनाईनकी रेलचे चोवसे. नहान मोठा, रंगना रंगका खिलोना टूरूपोटुयीनला ललचावसेत अना मंग मायबाप खिलोना लेय देसेत.

आमर् नहानपनमा झाककर देखीसत् दुकानपरक् खिलोनाइनको वू जमानो नोयतो. कवलकी बंडी बनावनो , मातीका चाक बनावनो, लाकूळको भोवरा खेलनो, गाडुर्ली फिरावनो, सायकलको चक्का फिरावनो, कुचकाळी खेलनो, झाळपरा "डाबी" को खेल खेलन् असा आमरा खेल. येन् खेलयीनसाती लगनेवालो सामान घरमाच मिल्. कबी कबी भोवरासारखो खिलोना खातीकनलक बनावनो पळ्. नहीत् सब हॅंडमेड खिलोना रवत आमरा.

येन् सब खेलको मजा अलग अलग रव्. मोरो पसंदीदा खेल होतो कवलक् बैल बंडीको. येन् बंडीका बेरूका बैल आमीच बनावजं. बंडीका चाक आमी मातीका बनावजं. येन् चाक बनावनकी प्रक्रियाबी बळी मजेदार होती. बंडीक् चाकसाती आमी सब संगीभाई एकरोज पटीलक् गावखारीकी माती आनज्. मंग् वा माती फिजायस्यान वोका चाक बनावज्. चाक दुय तपनी वारायस्यान होतवरी आमी कामथमा सेरी चरावता चरावता सेनी जमा करज्.

दुय तपन वार्‍या चाकयीनकी सेनक् सेनीमा भट्टी लगावज्. मंग भट्टीमाका पक्या चाक बंडीला लगावज्. या बंडी आमरा तपनबेरा बाळीमाक् झाळखाल्या खेलनला मज्या आव्. तपन उतरेपर आमी या बंडी धरस्यान बाळीमाक् कांदा लसूनक् वाफामा खेलज्. वाफाला खांड पाळस्यान येक वाफामालक दुसर् वाफामा बंडी कुदावनोमा मोठी मज्या आव्.

येव कवलक् बंडीको खेल बिन पैसाको होतो. खेळापाळाक् टुरूनको उनारोको येव मुख्य खेल आता बहुत कम खेलेव जासे. येव ग्रामिन खेल आता गाव खेळामाबी बहुत कम चोवसे. ये खेल ग्रामिन संस्कतीका अस्सल खेल आती. इनको जतन होये पायेजे......तं चलो मंग.....घरकं टुरूपोटुनला कवलकी बंडी बनावनला सिखावो अना टुरूपोटुयीनसंग् येनं खेलको मज्या लेव.

गुलाब बिसेन (दि.११/०५/२०२१)
नहानपणको यादगार खेल


हिरवोगार सडा टाकेव आंगण, आंगण मा आई सुंदर रांगोळी टाकत होती. ओंन रांगोळी को आसपास मोलाच जसी काही सुंदर रांगोळी टाकता आवसे असो समजत आडवी तिळवी रांगोळी को खेल चल मोरो.. अर्धी रांगोळी नास इदवास करकर मंग मोरो खेल मिटकत होतो.. दुपारी सब सोया का मुन देखे को बाद मोरी सखी आवती अना आमी काक माहल्प बयनी भात भाजी बनावन को खेल मंडावत होता. इटांगुर को चुरा को तिखट , माठ की भाजी पोई को रायतो ,,अना सिसी ला धागा बांधकर पाटी को बिहिर को पाणी ओलनो..भाजी बिकणे वाली साती डब्बा को झाकण की तागडी,  खेल दिनभर रमकत होतो. मोरी माय आमरो साती नहान नहान माती का दूय अवली,तीन अवलि चुल्हा बनाय देत होती ओको पर एकघण आमी ससार को भात भाजी बनायता.अज भी याद से. कोणी चीड चिडी सयेली कभी कभी खेल मिटकाव अना पराय जाय

सौ छाया पारधी
सिहोरा

 नहानपनको यादगार खेल 

नहानपन् आम्ही बहुत खेल खेल्या जसा काड़ी ढोपासनी,लगोरी,धावनी,लप्पन् छ्प्पन्,गोची,एक बकरी खाऊंगा, अजुन बहुत सारा ।पर मोरो सबसे प्यारो खेल होतो भांडा-भात।मोरी आई (मायआजी)मोरो साथी माती कि चुलोली  बनाय देत होती,ना मी ओकोपर सैपाक करत होती मजाक को।पर एकबार सच कि लेपसी बनावनको इरादा करेव्।आपलो सखी यिन संग पाटंग पर खेलत होती कभी कभी। पाटंग पर दुय् कमरा सारखा होता बीच मा लका पायरी चढणसाठी। वोन दिवस मि पाटंग पर चुल्होली लिजायेव ना लहान् लहान काड़ी बनायेतो ज़रावन् साथी।साखर,कनीक ना कटोरी लपायकर लिजायेतो।पाटंग आय त कोनीला पत्ता नहीं चल असो पुरो विश्वास होतो।पर बास जाये येतरी सोचनकि अकल् नोहोति।मोरी सखी होती दुय् ना मी।चुलो पेटाया,मिन कटोरी मा पानी टाकेव साखर ना कनीक ना वा सप्पा डिकी।बास फैली ना मी चुलो बुजायेव।पर मोरी सिटि पिटि गुल भयी।तसिच मोरी लहान मामीजी आयित्।ना बहुत चिल्लाइत् येन भेव् लका कि आग लग जाती त  कसो होतो,काहेकि आम्ही बहुत लहान होता ना आमरो  खरी को सैपाक मंजे गोड लेपसी अधूरी रही।पर आज भी वय गोड याद बहुत मीठी सेती।अज को बच्चु इनला शायद हे खेल कभी नहि समजनका।

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे

तारीख =११/५/२०२१
लहानपणको यादगार खेल 

    
      खेल भांडा 


     खेल भांडा को खेल म्हणजे  आमरो खुप आवडतो खेल होतो!  उन्हाळो मा आम्ही शाळाला सुट्टी होयव परा घर आयके नुस्ता खेल भांडा काढके खेलत होता. इटईनला उघरके तिखट बनावत होता,अना बाळी मा लका कचरा काळी नहीत मम्मीनं लगायव वापा मालका भाजीको बनाव होता, अना वापा का पाना तोड्या मुन गारी बी खाजन,  रेती को भात बनायके लहान सो मातीको चुलो पर ठेवजन , जाम्ब को पानाला तोडजन अना दवाईको टोकर लका काट शारी उनकी रोटी बनावजन, असोच नकली को सुंदर जेवन बनायके मज्याक लका खाजन। कधी काही की दुकान, त कधी मस्त बाहुली सजावजन.दिवस भर खेलसेव मुन घरका लोक खूप चिल्लात तरी आम्ही काही कोनीकी आयकत नव्हता . कधी कधी मोरी आई आमरा खेलभांडा टिन टप्पर मा बिकनसाती जमायके एक जाग लपायके ठेव. मंग आम्ही दिवसं  आई सोई म्हणजे चुपचाप वय भांडा ढुंढके खेलत होता . लहानपण को खेलईन की मज्याच अलग होती . लहान लहान गोष्टींऩ परलक आपलो सैली संग झगडा करत होता. पर आब त पहले सारखा कोनीच नही खेलत सब मोबाईल अना टिव्ही परा दिवसभर लग्या रवसेती. पहले घरोन घर लहान  टुरींकी आई आपलो चुलो संग एक लहानशी चुलोली आपलो नातीन सातीबी  बनायदेत होती.  आब त कोनीकिच नातीन तपनमा बाहेर खेलता नही दिसं. आम्हीत आम्हरो लहानपण  खुब खेल्या, खुब मस्ती बी करत होता अना शाळाको अभ्यास भी करजन. 

 रानु राहांगडाले
तारीख:-११/५/२०२१      
                    
                 लहानपनको यादगार खेल
                             कुची 
                        
एव खेल कदाचित नामशेष भय गएव.एन खेलमा आमी लहानपण यव खेल खेलत होता. एक हातभर चिंधी ना ओको लहानसो चेंडू बनावत होता. चांदा क उजाळो मा आखरपर सब संगी जमा होजन. मंग उनका दुय थुम्ब मनजे टिम बनावत होता. दुय टिमका  दुय कपतान धळीपर बस्या रव्ह्त ना मंग ग कुची झाळक अँधारौमा फेकत होता. ना दुही टिमका टुरा कुची धुंडत होता। एखादला कुची भेटी त सबजन कुची हिसकन साती भिळ पळत. ना आखीर मा जेकजवर कुची रव वु आपल कपतान जवर देत होतो. एन खेलमा आमरा टेंगरा फुटत ना हातका कोहंगा उकसत जात होता. यव खेल बहतघन खेल्या सीजन पर आता यव नामशेष भय गयी से.  तसोच खेळामाका कोहरोको खेल. आटीपाटी नामशेष भया कारण आता सिंमेट डांबर का रोळ होयलक जागा नही रही. 
                    
डी पी राहांगडाले 
    गोंदिया


 लहानपनको खेल


लहानपण का खेल अमरा बहुत होता जसा कि भोवरा , टिपलं दांडू , रेस ट्रिप ,चळी-चंपा , आबी-लाबी , कांच कि गोली असा बहुत होता .कांच कि गोली मा त मी एक नंबर होतो मोला मोरो बरोबरी का कोणीच खेळणं नही देत  होता त मी मोरो पेक्षा मोठो टुरुपोटु संग खेळत होतो. पर मी जब बहुत लहान होतो तसो मा मोला जास्त समज नही आई होती त मोरो खेल होतो लकडी का बयील.
आमरो घर एक लाल रंग को बयील होतो वकॊ नाव होतो मेंडक्या . मेंडक्या नाव सारकोच लहान सो होतो पर बडो मारखोंडया  होतो. घर को गाय को गोरा आय अना माणूस सारको घोरत होतो अना बडो गुणी होतो म्हणून आमरो बाबूजींन वला बिकिन नही घरच मरत वरी रहेव.
आता मोरो खेल को बारो मा सांगूंसू  मोला लकडी का  बयील बहुत पसंद होता. बोट भर पासून त हातभर वरी लंबा मोरो जवड वडगा भर बयील होता. तरीपण बाबूजी कहीं भी जात बाहेर गाव, बजार , या घर को बाहेर कहीं भी त मोरो एकच सांगणो रॅव्ह मोरो साठी मेंडक्या बयील आणो . बाबूजी घर आयो पर खबर लेत होतो त बाबूजी को कवणो रॅव्ह बटा दुकानदार च मर गया होता दुकानच चालू नही करिन सकाळी जाऊ त पक्को आणू . आता मोला थोडी मालुम कि बयील दुकान मा नही भेटत.
असो होतो मोरो बालपण को खेल.

देवराज भुरकन पारधी 
मुळगाव - वडद, हालमुक्काम (नागपूर )

लहानपनकाे खेल
बेंडवागोली
--- *शेखराम परसराम येळेकर* --
इतवार को दिवस होतो. माय सरकारपासूनच सयपाक ना धुनोपानीक् काममा लगी होती. पाच सय दिवस भया होता मायन् धुरा की तोर् काटस्यानी वकी नहान नहान पेंडी बांधकन खऱ्यानपर ठेयी होतीस. शेरी पाटरु ना ढोर बासरुको तोर् खानको भेव मनुन जल्दीच  तोर पीटनसाती मायन् सखुबाई ना फेकुबाई अशी दुय वन्यारनी बनायी होतीस. पन सखुबाई क् मामसुसरोला खाल्या उतराइन कसेत अशी खबर आयी मनुन वा आयीच नही. मोर् मायला बहुतच बिचार आयेव, मनुन माय मोला कवन बसी, "चल ना रे बाब्या, तोर पीटनला, लवकर होये त् घर् आय जाजो." मी कयेव, "माय मी आवुसु जरुर पन मोला खाजो खानला आठाना देजोत् आवु." माय न् हो कयीस. मी हाशीखुशीलका माय संगा खेत् गयेव, माय संगा उमस झोडप्या समान मोला जसी जमे तसी एक पारुगवरी मनमाने तोर पीटन लगेव. माय मोरी खुश भयी ना आपल् पीवशीमालक आठाना काहाडीस ना मोला देईस. काही नोको लेजो खाजोच लेजो, असो मायन दुयघन सांगीस. मी बहुतच खुश भयोव ना यन् आठानाको का करु ना का नही असो मोला लगत होतो. मी सीदो दुकानपर गयेव. मोरी खेलनकी काच की गोली फुटफाट भयी होती, काही गोली त् चेचरानी होती मनुन बेंडवागोली खेलनसाती नई नई गोली लेनको बिचार करेव. आठानाकी दस गोली लेयेव. मी बहुतच खुश होतो. मोर् जवर नवी नवी गोली देखस्सान मोरा संगी बी मोर् जवर हिंडन् फिरन लग्या. गोलीको कोणतो खेल खेलनको यकपरा बिचार चालू भयेव. रमेश कव् टोचपाच खेलबिन, सोटु कव् बदगोली  नही त् राजारानी खेलबिन. बंडू राजारानीक् खेलमा हमेशा रानीच बनत होतो मनुन बंडू कवन बसेव, तुमी काहीच कवो पन आपुन बेंडवागोलीच खेलबिन. सबजनको बेंडवागोली खेलनपर एकमत भयेव. मंग सुरजलाल भाऊक् कोटाक् डहलमा बेंडवागोली खेलनको बिचार कऱ्या.  सय जन होता, यव पायजे का वु पायजे  असो करकन तीन गडी एकआंग ना तीन गडी दुसर् आंग असो खेल जमाया. मोला गोली बढीया खेलता आवत् होती ना नई गोली मोरच् जवरकी होती मनुन मोला हिरो सारखोच लगत होतो. आमरो खेल बढीया रमेव होतो. यतरोमा कोनीतरी चिल्लायेव का गुरुजी आया रे. गावमा गिरेपुंजे गुरुजी को मोठो दरारा होतो. आमी घबराया कोटाक् कोन्टामा लुकान्या. सप्पाई चिडीचिप, बोलनको  नावच नही. मी खाल्या ना मोर् पर पाचजन असी गत होती. जीव जासे का का? असो लगत होतो. घडीभरमा आमी कोटाक् बाहर् आया. गुरूजी गया होता पन मोरी बेंडवामा अना वक् अगलबगलमाच होती वा सप्पाई गोली कोनीतरी उचलकन लिजाई होतीस. मोरी गोली गयी मनुन मी रोवत होतो. मी आसु पुसेव ना नहानसोच टोंड करस्यानी घर् जान बसेव. काही खायेव सारखो टोंड हलायेव ना मायक् सामनेलका गयेव. माय न् कयीस का, बाब्या, का करेस रे आठानाको, मी कयेव, " पीपरमेंट लेयेव ना व माय." असो झुठमुठको सांग देयेव. मोरा बाबुजीबी माय जवरच उभा होता. मायन् अना बाबूजीन् मोला काहीच नही कयीस मनुन मी उगोमुगोच होतो. एक पारुग तोर् पीटन लगेव मनुन काहीच नही कयीन.पन मी मोरी गोली गयी मनुन मनक् मनमा रोवत् होतो. बादमा जेन् गोली लिजाइस वोला मालुम भयोवका बाब्या की गोली आत, मनुन वु इमानदारीलक् आमर् घर् आयेव. मी नही चोयेव मनुन मोर् बाबुजीजवर गोली देईस ना चली गयेव ना बेंडवागोलीवाली बात सांग देइस. मी लहान्यांगक् सपरीमा उगोमुगोच बसेव होतो. "बाब्या अ बाब्या" असो जोरलका मोर् बाबुजीको आवाज आयेव. मी धावतच बाबुजीजवर गयेव.ना कयेव, बाबुजी का भयेवजी.  बाबुजी कवन बस्या, "तोर् मायन् आठाना देयी होतीसत् का करेस रे वन् आठानाको." मी कयेव "खाजो लेयेव ना जी बाबुजी". बाबुजीन् दोबारा बिचारीस तरी मी उच् आवाजमा कयेव का केतक घन सांगु जी बाबुजी, का मी खाजोच लेयेव मनुन. मोरा बाबुजी जवर आया ना दुय गालपर दुय थापड जोरलका मारीन, थापड अशी मारीन का मोला लगेवका भुकंपच आयेव. "बट्टाला यक् मायन् येला खाजो लेनला पैसा देईस ना यन् गोली लेईस. ना यव कोटाक् डहलमा संगीभाईसंग बेंडवागोली खेलसे." गोली लेईस त् लेईस झुठ बी बोलसे. मनुन अकीन दुय चार देय देईन. मोला कायी दान नही सुदरी त् मी सीधो मायक् कोऱ्यामा लप गयेव. आब् असो नही करु ना व् माय. मनुन मनमाने रोवन बसेव. आब् रातमा जेवन नही करनको, असो मी ठयराय टाकेव. मायन् जेवनला बुलाईस, बाब्या जेवनला आवरे, मी कयेव, मोला भुक नाहाय मी नही जेवु. माय लाडलकाच चल बेटा जेवनला बारबार कवत होती ना मी नही आवु कवत होतो. मंग मोरा बाबुजीको दिमाक सनकेव ना  कवन बस्या, "या काय की रे तोरी उपाद." मंग अकीन जोरलकाच चिल्लाया, "अबे आवसेस का नही जेवनला, का कहाडु तोरी बेंडवागोली."  मोरी बेंडवागोली फेमस भयी होती. बाबुजीको राग देखस्यान मोरीत् फटारगयी होती. दुसर् भुकंपक् लाटकी बाट देखनो खतरा से असो सोचकन मी चुपचाप जेवनला बसेव. मंग दुयक् महिनावरी मी बेंडवागोलीच नही खेलेव.  इमानदारीलका आपलो अभ्यास करेव. दुय तीन दिवसवरी मोला सपनमा बी बेंडवागोलीच चोवत होती. अशी होती भाऊ मोरी बेंडवागोली की कहानी

डॉ शेखराम परसराम येळेकर
१२/५/२०२१


 खरोखर मा लहानपनको बचपन कभिच वापस नही आव . मोठो होयपरा याद आवसे . खेल असा होता की, ल़.ंगडी,गोटा खेलाई,बेंदा,लुका झाप्पन,टीक-टीक रंग आमाले पाहीजे कोनसा रंग, नद का पाहाड,पत्ता खेलाई(तास पत्ता) घसरन पट्टी ईत्यादी.  
 पण मोरो आवडतो खेल घसरन पट्टी .मोरो मयका मा आईगी को घर को मंग मस्त मोठी पि.डी.राहांगडाले को लहान वाडा म्हणून से वा वूनकी बोडी आय. 
वहा मस्त नहेर से वेकी मोठी ऊची -लंबी पार से वहा आम्ही खेलजन  . वहा आसपास परसा का झाड सेत ,वोकी डार तोडजन वहा बसकन घूसरजन. मग गाडी का टायर रव वोकोपर २-३ जन बसजन ना मस्त घूसरजन .आबभी तसीत पार से .मन आमरा बम्हाभाऊ से जे आब मा.पोलीस शिपाईसेत ,उनका संगी देवभाऊ पारधी सेत इनको बडो भेव  ये धावत मंग सिधा आम्ही हनूमान मंदीर मा लुकाजन.मोरो आईगिंको घर को आमोर सामने से वहा लकाजन .घडीभर थांबत नोहता ना वहाच मंदीर को हाॅलमा कोंटा खेलाई खेलजन. मंदीर को आमोर सामोर जि.प.शाळा से वहा जाजन वहा मोठो मैदान से वहा मन चाहे खेलजन. असा होतो मोरो बचपन बडा झगडा करजन . रोंटी कवजन चिडावजन त ४-५दिवस एकमेक संग बोलत नोहता. अना आता साल ना महीना आपलो सहेली ला डोरालका दिसजन नही.  संगमा
 अभ्यास भी करजन . 
 म्हणून कसू कास बचपन कभी वापस आवतोत!!!

बित्या दिवस वापस नही आवत .





     सौ:ओमलता के पटले

लहानपनको खेल
(काळी घुसराई)

लहानपण देगा देवा
मुंगी साखरको रवा
ऐरावत रत्न थोर
वोला अंकुशको मार

असो एक कवी न कयी सेस. वा बात एकदम बरोबर से. ना त लहानपण वापस आव ना वय लहानपनका खेल. मोठो होयेपरा लहानपनका खेल बी खेलता आवत नही. लहानपण की मज्या काही अलगच रव्हसे. 
     मोरो बचपण अना दसवी वरी शिक्षण मामा गाव म्हणजे बडद माच गयेव. तसी खेल मा मी तरबेज. दिवसभर उदमस्यान पणा करनो मा माहिर. घडीभरच यहा त घडीभरच वहा. मोरी आजी बुलाय  बुलाय के थक जाय पर घर आवन को नाव नही. खेलमा मस्त धुम. जबवरी मोरो लहान मामु को भेव देखावत नोहोती तबवरी खेल चालूच रव्ह.
कयी प्रकार का खेल खेल्या आमी. लंगडी,आबी देवाई,गोटी(पाच गोटी,पंधरा गोटी) दप्तर मा गोटी अना लंगडी खेलन की बील्ली हमेशा रव. इश्कुल मा पुस्तक लीजानो भूल जाज पर गोटी अना बिल्ली नही. कयी बार त दप्तर चेकींग मा मार बी खायेव. पर दप्तर मा उनको ठेवा रवच.
नद का पहाळ,लगोरी,टीक टीक रंग ,धावा पीटी,उठा बसी,रेसटीप,(लुकाछपी), पर इन सबमा मोरो आवडतो खेल होतो .काडी घुसराई. उतार परलका काडी घुसरावनको जेकी काडी सबसे मंग रव्ह वोको पर दाम आव. आबी देवाई को खेल खेलनसाठी लवचीक अना लंबी काडी की जरूरत रव्ह. एकबार त बाबुजी की तुतारी खेलन लीजायेव होतो. अना तुतारी भूल के घर आयेपरा मस्त पाठ बी सेकी होती. जानदेव तुमला सांगु त तुमी अखीन हासो बाबा. 
 खेल मा जेकी काळी सबसे मंग रव्ह वोको पर दाम आव. मंग जेकैपर दाम आव वोका दूही हात वरती करधको अना हात परा काळी ठेवनको अना एकजन आपलो आबी को काळी लका जोरलका वा काळी दुर फेकनको. अना दुरवरी बाकी जन फेकत रव्हत होता. असो करता करता वोकी दाम ढोढी को वोनांग राहांगडाले को अमराई वरी जाय. कभी आऊट होत होता नही त मंग दया आयके दाम माफ कर देज. येन खेलमा रंनीग की मस्त प्रँक्टिस होय जाय. मंग अमराई माका गोळ आंबा पहारेदार ला हुलकावणी देयके चोरनको अना खात खात घर आवनको.
तुमला खरी सांगु यव खेल खेल खेलके मी १०० मीटर अना ४००  मीटर रनींग मा हमेशा पयलो नंबर लेयी सेव. लाँग जम्प अना हाय जम्प मा ट्राफी भेटी सेत मोला.
त असा आमरा बया खेल होता.बयाच कवनो पडे ना.तहान भूक भूलके खेलत होता.कभी कभी रोंटी बी खेलत होता.झगडा बी होत पर घडीभरच. 
आबसारखो मोबाईल अना टी.व्ही बी नोहोतो.खाल्या मान टाकके आबसारखो बसनला.

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
गोंदिया

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