प्रेमविवाह
राती का बारा एक बजे को समय रहे.संगीता को घर का सब लोग सोया होता. दिनभर को काम को थकान लक संगीता ढार- ढुर सोईती. जवड़च ओकी बीस साल की बेटी काव्या सोईती . अनिल भी आपलो खाट पर सोये होतो…..एक मध्यमवर्गीय परिवार जो सुखी दिसत होतो……
काव्या को बिहया जुडेतो... टुरा बँक मा निबंधक होतो..मार्च महिना को दस तारीख ला बिहया निश्र्चित भयेव...घर भर का सब खुश होता. बिह्या को काममा दिनभर सब व्यस्त होता. मुनच सब गहरो झोप मा होता…..
रात का दुय बज्या रहेत. ...एकदम कुत्रा को भुकन को आवाज आयेव..पर अनिल अन् संगीता घोर निंद्रा मा होता…. वय " टस का मस "नहीं भया……….
झुंनझुरका की बेरा, कोंबड़ा आरायेव तसोच संगीता ला जाग आई. डोरा कुस्करत वा उठी जवड देखिस, काव्या नोहोती ..संगीता ला लगेव इतन उतन रहे….पर बहुत बेरा भई काव्या कहिच दिसिच नहीं संगीता को ' पाय खालत्या की जमिनच सरकी"......चारही आंग् धुंडिन तब एक चिट्ठी हाथ मा लगी….."आई ,मी घर सोडकर जाय रही सेव,मी तुमला केत्तो बार सांगेव ,मी अंकित संग बिह्या करून, पर तुमि ,अंकित दीगर जात को आय ,गरीब से मुन मान्यात नहीं... मुन मी अंकित संग बिह्या कर रही सेव".....घड़ी भर माच संसार की घड़ी बिखर गई खुशी की घड़ी दुख मा बदल गई .सब आंग ढूंढेव पर भी काव्या नहीं भेटी . येत्तो साल की कमाई इज्जत पानी मा मिल गई…………….धिरू धिरु समय बितन लगेव….बेटी की याद काई कमी होत नोहोती.
दुय साल बाद संगीता काम साती जवड को शहर नागपूर मा आई.. पैदल जाता जाता एकखट्टे वोकी एक भाजीवाली को टोपला ला जोरदार टक्कर लगी, ना टोपला को भाजीपाला बिखर गयेव.जल्दी जल्दी मा
भाजी वाली आपलो भाजी पाला उठावन लगी ,संगीता ला वा भाजीवाली पहचान की लगी. जसी उठी वा तसी
संगीता ला आश्चर्य को धक्काच बसेव वा काव्या….. वोकी बेटी…..
"पुत्र कुपुत्र होय सकसे पर माता कुमाता नहीं होय सक"... दूही का आंसू झरन लग्या. काव्या न सांगीस की तीन चार दिवस त मज्यामा गया .अंकित को घर सब काम पर जानेवाला मजदूर होता. पर आमरी जात का ना उनकी जात का सब परंपरा अलग अलग. अंकित दारू पिवत होतो…. रोज मारनो पिटनो एक दिवस मोला घर को बाहेर काहडीस ...गाव वापस त् आय नहीं सकु... मुन भाजीपाला बिककर आपलो गुजारा करूसु..दुही को नयन की धारा रुकत नोहोती……...काव्या बिचार करत होती "अब पछताये क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत"
✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी✍️
Chan story aahe....nice
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