Thursday, March 19, 2020

भुली बिसरी याद

                       भूली बिसरी याद

अज बसे बसे याद आई मोरी माय, मंजे मोरो आजी की. उन्हाळो को छुट्टी मा आमी गावं जाजन् सब का घर जवड़ जवड़…. काका ,काकी माहलपा, महालपी, बड़ीमाय, बडोजी, मोरा बहिन, भाई सबजन् रवजन् . बड़ी मज़ा आव्

       तब टीवी नोहतों, होता मस्त मस्त खेल, …..चौरस ,चोर पुलिस, कनचा, बिट्टी दांडू ...एक खेल बड़ों अनोखो होतो. होळी होयेपरा परसा को झाडला शेंग लगत् . शेंग परिपक्व होत्.. वय् शेंग जमा करनों, उनला फोड़नो, आंबा को गुईला फोड़कन बिजी निकालनो,नहीं त मगं मोहू की टोरी फोडनो मा मज़ा आवं…… दुपारी बरफ वालो को आवाज आयेव , तसोच  सबजन फोड़ी बिजी बरफ वालों ला देयकर बरफ लेजन ,मेहनत को पैसा को बरफ खानला बड़ी मज़ा आव्……..
         दुपारी सबजन लेटपेट होतं, तबं मोरी माय कथडी शिवत होती. कथडीला चारही बाजूला सुंदर कपड़ा की रंगबिरंगी फुली लगावं. बडो प्रेम  लक एक एक धागा लका , कथडी को येळा भर्.

        एकबार असोच दुपारी आमी बस्या होता, मी मायला बिचारेव,. "माय तोरो संदुकमा का- का सेत, देखावना मोला" मोरी उत्सुकता देखकर मायनं आपलो चाबी को झोक़ आनीस अना संदूक खोलिस. संदूक देखस्यानी मी त दंगच भय गई.संदूक को पल्ला परा बाबूजी,फुफू‌ की जन्म तारीख लिखी होती... संदूकमा  मी कभी देखे नोहतो असो भी सामान होतो... एक सुंदर चौकोनी थैला सारखो, ओला सुंदर दोरी, आटी वाली…. माय ला मोरी उत्सुकता दिसी अन मग सांगण बसी,,,,,"बेटी, येला झोलना अन येव लहान वालोला खलता कसेती,जब् नवरदेव बीह्या लगावन साठी सार होत होतो, तब झोलना मा चाउर पठावत होता. दवडी, बिवडा मा झोलना ठेवत होता. "   …...मग मोला बिजना दिसेव गोल गोल, वोला बेरू की दांडी, उत्तम धागा की नक्काशी होती. माय न सांगीस पहले आमी खाजो मा बाटत होता. खजिना मा अदीक अत्तर दानी, सिंगार पेटी, कासो की भानी, टमान,पितर को गंगार, कासो की बटकी, भरता किंवा गिलास,  तांबो को गडू, पहले का चांदी का सिक्का ,एक पैसा , दुए पैसा, पांच पैसा, दस पैसा की एक पिवसी, जवड़च पोहरा का लाल मणी अन जापता लक ठेये होतो,... हिड्डा ना पिट कवड़ी….

                  - सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

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