इतन उतन चहलपहल.कोनी सरबत बनावत होती ,कोनी पान बनावत. बिहया को मांडो सजेव होतो. नवरदेव आवनकी बेरा भईती. दूर लकच बॅडबाजा की आवाज दुर्गा को कान् मा पड़त होती. तसोतसो वा अधिकच कावरी बावरी होत होती .दुर्गा को मनमा भावनाओ़ को तूफान अधिकच उबलत होतो. आपलोच तांद्री मा गतकाल को चित्र झर झर डोरा को सामने आयेव्. ……….देखनला दुर्गा गोरीपान , शिक्षण बारवी पास, शिकन कि इच्छा, राघव सारखो चांगलो टुरा को रिश्ता आयेव मुन अाईबापन दुर्गा कों बिहया मोठो धूमधाम लका करीन.
……...नवो नवलाई का दिवस पंख लगायकर उड़ गया. आता दुर्गा मातृ स्पर्श लक भर गई .दुय महीना को गर्भ आेको गर्भ मा पलत होतो. सब सुंदर सपन सारखो दुर्गाला भासत होतो. राघव भी सरल स्वभाव को होंतो. दुर्गा की लहान मोठी सब इच्छा पुरावत होतो.
……..एक दिवस दुर्गा को संसार ला नजर लगी. होतो को नोहतो भयेव .राघव ला चक्कर आयेवं.डॉक्टर कर लेगेव परा मालूम भयेवं की ओला रक्त कर्करोग से .दुर्गा को पाय खालत्या की जमीनच सरकी…...
तीन महिना माच राघव गयेव….दुर्गा एकटी पडी. येत्तो मोठो दुनिया मा आता आंसू बहावत गुमसुम सी पड़ी रव दिन दुनिया की काई खबर नोहती.
…….सासू सुसरो भी चिंतित होता की आखिर पहाड़ सरीखी जिंदगी दुर्गा कसी काटे. आता दुर्गा साठी काही तरी करे पाहिजे दुर्गाला बहू बनायकर आन्या, आता बेटी बनायकर बिदा करके आपलो फर्ज पुरो करे पाहिजे. असो बिचार करके टूरा देखन सुरु करीन, पर योग्य टूरा भेटेव नहीं. कोनी उमर मा जादा त कोनी दुर्गा को पोटमा को अंश सहित अपनावन तयार नोहता. बड़ों मुश्किल लक येव चांगलों टूरा भेेटेव अना दुर्गा का जसी से तसी अपणावन तयार भयेव्.
…"दुर्गा ,चल बेटा आता"आवाज न दुर्गा की तंद्रि भंग करिस. दुर्गा भरेव मन लका मंडप कन निकल पड़ी येन सोच मा की,"आपलो टूरा को दुःख भुलायकर फक्त मोरो जीनगी साठी ये मोरा सासू सुसरा केत्तो त्याग कर रह्या सेत "दुर्गा दुख भुलयकर नवों दिशा कर चली,नवजीवन मा पदार्पण करन,,,
- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
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