Saturday, April 11, 2020

माय

काव्य प्रकार : मुक्त छंद

मोरो तोरो पर केत्तो से पिरम
कसो मी सांगु तोला

काटा गड्से तोरो पायला
दुख लगसे मोला

तबेत होसे तोरी खराब
रातभर जागूसू मी

तोरो पोट भरणसाती
अर्धी रोटी खासू मी

दुनिया मा जगनसाती
तोला संस्कार चांगला देसू 

तोरोच साती बेटा मी
काळी सरिखी झीजुसु 

तोरो भविष्य बने पायजे मून
एक एक पैसा जोडूसू

मोठो होएकर सहारा देजो
दूध को करजा कबी नोकों भूलजो

माय को बुढ़ापा को सहारा तू बनजो
नहीं बनेस काहि चले पर चांगलो इंसान बनजो

✍️ सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

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