धूप छॉव आदमी क् ,जीवन को से अंग।
जब ओरी सावली से,तपन बी से संग।
धूप छॉव ला देयो जासे,सुख दुख की उपमा।
जब ओरी सुख से, दुख भी रव्हसे संगमा।
तपन म्हणजे सूर्य को प्रकाश,
वोक् लक् होसे हमखास विकास।
जीवन मा सावली को जो से स्थान,
तपन बी ओतरीच जरूरी से श्रीमान।
तपन मुळ् धरतीपर जीवन से सुरक्षित।
तपन नहीं रहे जीवन होय जाहे विपरीत।
तपन तपसे मून रोगजंतू को होसे नाश।
गर्मी भी मिलसे अना फैलसे प्रकाश।
तपन तपेव ल् पानी की होसे भाप।
आसमान मा जायस्यार बनसे बादल आप।
पानी बरसाय स्यार येन धरतीपर।
नदी, नाला, तलाव, बोडीला देसे भर।
सावली मा आदमी ला आवसे बहुत आनंद।
पर तपन करसे आदमी क् जीवन को संरक्षण।
जीवन साती तपन जरूरी से, वोको नोको करो त्रास।
प्रगति पथपर जानसाती,तपन को संगसे खास।
तपन मा विटामिन डी बनसे,
जो प्राणी इन साती से जरूरी।
झाड झळुला बी तपन माच् ,
आपलो भोजन तयार करसेती।
रचना- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया.
दि.१९/४/२०२०
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