काव्य स्पर्धा क्र.४
स्पर्धा साठी
विषय: आंदन (दहेज)
(एक टुरी की व्यथा)
नहानसो आम्हरो परिवार,
दुय बहिन एक भाई
संग आम्हरा पालन हारा,
मोरा बाबूजी अना आई
एक दिवस बात हिन् को,
जमेव असो रंग
आई बाबूजी कव्हन लग्या,
मोठी बाई नहीं रव्हन की आम्हरो संग
आयकताच हृदय मोरो,असो भरेव
मीन असो कोनतो,पाप करेव
मोला रोवता देख,जवर आयी आई
गलती तोरी काही नहीं, तोरो बाबूजी ला से बिह्या की घाई
गरीबी मा कसो होये बिह्या,येवच् सोचत जासु
मामाजी को फोन आयेव, पाहुणा धर के आऊसू
पाहुणा आया बिह्या जुड़ेव,करन लग्या बीह्या की तैयारी
मोरो आई बाबूजी ला,चिंता पड़ गई भारी
बाबूजी कव्हत,जमानो को मानलक चलनो पड़े
टीव्ही,फ्रिज,कूलर, बर्तन भांडा, आंदन देनो पड़े
नवरदेव का कपड़ा,अंगूठी देन को, निभाईन फर्ज
कपड़ा लत्ता आंदन साठी निकालिन कर्ज
कसो होए बिह्या,बाबूजी न हाय खाय डाकिन
बिह्या सजरो करन साठी,अर्धो एकड़ बिक डाकिन
अगर आंदन की,या कुप्रथा नहीं रव्हती
मोरो बाबूजी की,आर्धो एकड़ नहीं बिकाती
टुरी पैदा भई ये मोठो पाप
मोरो कारण दुःखी भया माय बाप
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✍🏻 संतोष (सोनू) हनसलाल बिसेन
मु. पो. दासगांव खुर्द
त.जि. गोंदिया
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