उन्हारो मा भग गयी तेज तपन
जरन लगयो भाऊ मोरो बदन
सावली मा बसके लव आनंद
मिल्हे राहत अना खिल्हे तन - मन ।।
भरी तपन मा गँहू, अरसी , चना
मूरनो से राई ,लखौरी अना धना
सकारी डोसका दर्द को मिसा बना
दादा मोरो चिन् गयो, कसो करू मना।।
कूलर,पंखा ,ए.सी. को दिवस आयो
ठंडो पाणी लक खूबच नहाओ
परसा को पान मा जामुर खाओ
सुट्टी लगसे मामा को घर जाओ ।।
तपन मा धरती को सीना जर जासे
पाणी सुखाय उड़ भाप बन जासे
दुपहरिया की तिरीप इस्तो जसी लसे
आम्बा को तिख्खो खावन मा भासे ।।
जीवन मा दुख सरिखी तपन आवसे
धीरज ले जिओ यो मान बड़ावसे
अपरो परायो की पहचान करावसे
सुख पायके मानुष जग रचावसे ।।
✍🏻 रचना- पंकज टेम्भरे 'जुगनू'
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