याद आवसे मोला गम्मत गुम्मत की कट्टी।
घड़ी भर मा मंग होय जात होता बट्टी।
लगोरी को खेल मा रोनटी बी खाजन।
गण देन को घनी खेल बिचकावजन।।
चंगा अस्टा को खेल मा नजर चुकावजन।
एक पर एक बिजी ठेयश्यार अष्टा आंनजन।।
बावला बावली को खेल खेलजन मिलकर।
नवरा बायको को खेलमा जाजन घुलकर।।
गम्मत गुम्मत को नवरा मंग बजारला जात होतो।
कहा गइस सोन्या कि माय चिल्लात आवत होतो।।
खेल होतो आमरो गंमत गम्मंत को बाई।
पर ससारखो खेलला भी वोत्ती मज़ा नहीं।।
आब त सोनों ना पित्तर वोतोंच चमकसे।
ससार को माणूस ओरखन फजिती होसे।।
वरत्या वरत्या मानुस मिठो बोल बोलसे ।
अंदर लक मनामा कपट ,अहंकार रवसे।।
मनुष्य वरत्या लका ससार को दिससे।
पर अंदर लक मन कारो कुचकुचो रवसे।।
मनुन सब चमकीली चीज सोनो नहीं रव्।
गम्मत गुम्मतला ससार की सर नहीं आव।।
✍️ सौ.छाया सुरेंद्र पारधी
No comments:
Post a Comment