Sunday, May 3, 2020

काव्यस्पर्धा क्र. 8 विषय-कास्तकार

(चाल: चांदणं चांदणं झाली रात)

कास्तकार कास्तकार से मोरो बाप
मेहनत करं से नहीं देखं कोनीकी बाट।। ध्रु।।

      सकारी उठकर बांधी पर जासे
      खातकचरा पासून सब करसे
ओको मेहनतमा, मेहनतमा नहाय आट
मेहनत करसे नहीं देख कोनीकी बाट।।१।।

      बडो आसलक खारी भरसे
      पऱ्हा लगावसे धान काटसे
नहीं मिलना, मिलना धानला भाव
मेहनत करसे नहीं देख कोनीकी बाट।।२।।

       घरका सबजन काम करसेत
       ठोकरको खासेत बारीक बिकसेत
कपडाला, कपडाला पड्या खोबा साठ
मेहनत करंसे नहीं देख कोनीकी बाट।।३।।

       जोंड धंदा साती गायी पालसे
       दूध बिकस्यारी बजार करसे
नहीं मिलना, मिलना दूध ला भाव
मेहनत करंसे नहीं देखं कोनीकी बाट।।४।।

        डोई पर कर्जा को बोझो से
        शिक्षण, बिह्याया को ओझो से
कर्जा मा कर्जामा डुबेव कास्तकार
मेहनत करंसे नहीं देख कोनीकी बाट।।५।।

         अन्नदाता येव जगको आय
         ठेवो काहीं तुमी येको ख्याल
अकाल, अकाल पडसे हर साल
मेहनत करंसे नहीं देख कोनीकी बाट।।६।।

सरकार को भी ध्यान नाहाय
खर्च अदिक से भाव नाहाय
मारेव जासेना, जासेना  कास्तकार 
मेहनत करंसे नहीं देख कोनीकी बाट।।७।।

✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

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