जब् आम्ही लहान - लहान तब् घर का बुजुर्ग बोधात्मक कहानी (दंतकथा)सांगत होता ना वोको बदला मा उनका पाय दबावनों पड़, ना पाठ खजावनो पडत होतो।
बुद्धिमानी कोन
एक गावमा मा एक बनिया रव्हत होतो, वोकि ख्याति दूर दूर वरी फैली होती।
एक दिवस वहाँ को राजा न् गप्पा गोष्टी करन बनिया ला बुलाईस, बहुत डाव वरी ईत् उत् की चर्चा भयी राजा न् बनिया ला कहिस.....
अरे बनिया महाशय तुम्ही त् बहुत हुशार ना मोठा धनीसेठ सेव,एवड़ो मोठो कारोबार से पर तुम्हरो बेटा एतरो मूर्ख काहे से? ओला भी काही सिखाओ।
ओला त् सोनो चांदी मा मूल्यवान का से ,एव भी पता नहाय कहेकर राजा जोरजोर ल् हासन बसेव....
बनिया - राजा को कहेंव बुरो लगेव, घर आयकर टुरा पूछन लगेव...
बेटा सोनो ना चांदी मा अधिक मूल्यवान का से?
*बेटा - सोनो बिना समय गमाये कहिस ।
तोरो उत्तर त् ठीक से मंग राजा न् असो कसो कहिस? ना मोरी मजाक काहे उड़ाईस ?
बेटा को समझ मा आएव होतो की राजा गांव को जवळ एक खुलो दरबार लगाव से।
जेकोमा दरबार मा सब प्रतिष्ठित व्यक्ति सामिल होसेत।येव दरबार मोरो गुरुकुल जानको मार्ग पड़त होतो।
मोला देखकर बुलावत होता । आपलो एक हात मा सोनो को ना दूसरों हात मा चांदी को सिक्का ठेयकर, जो अधिक मूल्यवान से वू सिक्का धरन कव्हत होता.....
पर मी चांदी कोच् धरत होतो।सबजन मोला ठहाका लगाय लगाय हासत होता,ना मोरी मजा लेत होता। येव प्रकार हर दूय दिवस मा होत होतो।
बनिया - मंग तू सोनो को सिक्का काहे नही उठावस,च्यार लोकहिन को सामने आपली फजीती काहे कर् सेस आपलो बरोबर मोरी भी काहे करसेस कसु?
बेटा -हासत .... हासत.......!!!!
आपलो पिता ला हात धरकर अंदर को कमरा लिजायकर एक पेटी निकालकर देखाइस जेकोमा पेटी मा चांदी को सिक्का इनल् भरी होती।
भरी पेटी देखकर बनिया हतप्रभ भय गयेव।
बेटा - जेन् दिवस मी सोनो को उठावू वोन् दिवस येव खेल बंद होय जाये।वोय मोला मूर्ख समझकर मजा लेसेती त् लेन देव ,अगर बुद्धिमानी देखाउ त् काहीच नहीं भेट्न को। बनिया को बेटा आव ,अक्कल लक काम लेसु।मूर्ख होनो अलग बात से ना मूर्ख समजनो अलग .....
स्वर्णिम मौका को फायदा उठावनो पेक्षा हर मौका ला स्वर्णिम ला तब्दील करनो।
जसो समुद्र सब साठी समान से, काही लोक पानी को अंदर टहलकर आव सेत.... काही लोक मछली ढूंढकर धरकर आवसेत ....ना काही लोक मोती चुनकर आवसेत।
बुद्धि पर कभीच शक् करनो गलत से।
तात्पर्य - बुद्धिमानी दृष्टिकोन पर निर्भर कर् से।
धनराज भगत
बाम्हणी /आमगांव
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