नरेश ओन साल 2 री मा होतो ना योगेश 4 थी मा ।
रामायण टीव्ही पर आवनेवाली होती न देखन की बहुत हाउस मन मा होती।
पर घर टीव्ही नोहती पर साद बहुत होती, म्हणून दुयी घर लका चुपचाप दूर सूर्योधन काकाजी घर रामायण देखन जात होता ना खालत्या बस कण बहुत आनंद लेत होता। आता काही दिवस को बाद मा वा सीरियल खत्म भय गई पर टीव्ही देखन की आदत पड़ गई। बीच मा च मग मोगली सीरियल चालू भय गई ती ।
आता घर को जवर को दूसरों गली मा नंदकिशोर काकाजी घर टीव्ही आय गई होती, पर बटा यन्जया उपाद च भय गई होती। काकाजी न हुशारी लका वा टीव्ही बीच को कमरा मा ठेईं देइस ना दुसरो हीन ला बेडरूम मा जानो अचप को होतो, म्हणूनच बाहर लका मजबूरी मा छपरी लका डोरा फाड़-फाड़ सारी देखनो पडत होतो।
कई बार काकाजी की गारी भी खानों पडत होती।
एक दिवस दुयी न बिचार करीन ना अजी ला पूछन की हिम्मत करसारी आपरो मन की बात सांगिन।
अजी तुम्ही घर टीव्ही काय नाही आनलेव? बिचारता च अजी को पारा सातवो आसमान पर चढ़ गयो ना मग दुयी की भई बोली लका साजरिच सुताई।
बैल को बाप हीन ला सांग देव् टीव्ही देखन ला काम धंधा ना पढ़ाई गई भाड़ मा, बटा हो पढ़ो नही त डुकर चराओ।
दुई सट-पटाय गया ना चुप चाप आपला पाय सरकाय सारी गोबर को टोपला धर कन आप-आपलो काम मा लग गया।
आता ओय दूसरा-दूसरा घर बदलन लग्या की कोनीला असो नोको लग की इनको त रोजकोच नाटक आय टीवी देखन को।
धन भगवान की करनी ना एकसाल चुरनो साठी मानुस च नही भेट रह्या होता, बड़ो मुश्किल लका भरत बाबाजी तैयार भयेव पर ओला संग साठी कोणी नोव्हता।
अजी न आपलो तीक्ष्ण बुद्धि को वापर कर सारी दुयी पर एक डॉव अजमाइस दुयी भाई जरा सा डगर भी भय गया होता।
अजी न बुलाईस न बिचारिस तुमला टीव्ही पाहिजे का ? आयकता बरोबर च दुयी को खुशी को ठिकानों नही समाय रहे तो न लहानँग मोठागण परान लग्या।
मग अजी न रोक्सारी आपली शर्त दुयी जवड ठेय देइस की अवन्दा आदमी की दिक्कत पड़ रही से त तुमला भरत बाबाजी की मदद करनो पड़े।
आता असली मोड़ सुरु भयों न मोड़ा की बारी आई, अजी न सांगिस तुमला बाबाजी संग चुरनो पर जानो पड़े, गाड़ो हकालनो पड़े, मोड़ा सड़कनो पड़े ना बेट भी मारनो पड़े।
टीव्ही को हाउस पाई दुयी न बिना सोचेव समझेव अजी ला हव कहय देईन काहे की टीव्ही डोरा मा चोय रही होती।
आता शुरू भयेव असली खेल न ऊ झुंझुरक च ठंडी ठंडी मा चुरनो पर जानो साजरी झोप मा लक उठनो बईल ना गाड़ो की तैयारी कर सारी घर सोडनो।
इच्छा त जरा सी भी नही होय रही होती पर टीव्ही डोरा मा चोय रही होती।
असाच रोज पुरो चुरनो भर तैयार होय सारी भूमसारी जान लग्या ना जमत पावत आपरो काम करना लग्या।
गाड़ो हकालनो वरी त साजरो होतो पर आता बारी आई होती खेत को खरहयांन मा जमा तनिस को ढग का बेट मारन की बहुत मोड़ा की जमा जो भय गई होती।
बेट को खेल शुरू भयो न दाल आटा को भाव मालूम पड़न लग्यो, योगेश त मोठो होतो कसोबसो आपलो डंडा फिराय लेत होतो पंचायत होत होती नरेश की जरा सो हल्को पडत होतो।
दूय तीन बार त साजरी च दातकुड़ी सूज गई ती पर हिम्मत नही हारी तीस काहे की डोरा को सामने टीव्ही चोय रहिति।
दुहि जसा आपली कसम खाय सारी घर लका रोज हिटत ना मेहनत करअती।
आखिर मा उनको अथक प्रयास ला रंग चढ़ेव ना अजी न नवोत्री कि फसल बिक सारी घर मा टीव्ही आन देइस ना दुयी को डोरा लक पानी आय गयेव।
घर मा इनकी कलाकारी देखसारी सबको चेहरा पर बहुत खुशी समाई होती न उनको प्रयास सफल भयो एकी उनला खुशी होती।
(आखिर जहाँ चाह वंहा राँह या सिद्ध भई।)
Er Naresh kumar Gautam
Dt. 26/05/2020
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