कोनी कसे अहंकार म्हणजे गर्व
कोनी कसे गर्व नहि ,आत्मसम्मान
एक शब्द का जरी सेती दुय मान्यता
तरी दुही देसेत जीवन मा अपमान ।।
तन बि रवसे इंद्रिय पर पुरो निर्भर
अन यव जीवन से दुय घडी को खेल
अहंकार करसे शरीर ला पुरो दूषित
मंग इंद्रिय को बि कसो रहे शरीर मा मेल ।।
जरा देखो त येन हरीभरी प्रकृती ला
केतरी से सत्वशील अन परम उदार
सतत मन मा करसे दान को च जतन
नहाय ओकोमा जरासो बि अहंकार।।
येन धरतीपर कोनी नाहाती नहान मोठा
सब सेती एक दुसरो पर जीवनभर निर्भर
हे मानव!समझाय ले तू या संकल्पना
तो तोरो जीवन नहि होनको असो जर्जर।।
येन जीवन मा कमाओ चांगली कीर्ती
अन पिरम, शांती को करो अनुष्ठान
जरा अहंकार को नाश करकन देखो
"मनुष्यता"को बस जाये साजरो प्रतिष्ठान ।।
मानवी मुल्य च करसे नर को नारायण
"राम-कृष्ण"धरतीपर भया पतित पावन
आता जार डाको 'मी"पन कि भावना
मंग जरुर,....
तुमरो जीवन मा बरसे हिवरो सरावन
तुमरो जीवन मा बरसे हिवरो सरावन ।।
वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
२४/०५/२०२०
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