Wednesday, June 3, 2020

प्रतिक की कहानी kalyani patle 002


    भंडारा जिल्हा को एक गाव मा एक रहांगडाले परिवार रवत होतो. उनको सातजन को एक खुशहाल परिवार होतो. वोन परिवार मा काका-काकी, आजा-आजी, माय-बाप अन प्रतीक नाव को एक टुरा होतो. उनको परिवार मा सब खुश होता पर अचानक एक दिन असो आयो का उनको परिवार मा अंधकार छाय गयो, काही कारनवस प्रतीक को बाप को स्वर्गवास भय गयो,अन उनको पुरो परिवार बिखर गयो. प्रतीक की माय प्रतीक ला धरके सासू-सुसरो अन देवर- देवरानीन संग रवन लगी. पर काही दिन को बादमा इनको मा फूट पड़न लगी अन झगडा होन लग्या. एक दिन असो झगडा भयो का प्रतीक की माय प्रतीक ला छोड़के आपरो माय घर चली गई. काहीं दिन मा वोको माय न दूसरो बीया भी कर लेईस. प्रतीक आपरो काका-काकी,आजा-आजी संग रवन लग्यो. पर माय-बाप को बिना प्रतीक को का हाल होतो वू वोलाच मालूम होतो. दूय साल को बाद मा प्रतीक को काका-काकी ला बेटी भयी. तब प्रतीक आठ साल को होतो. उनकी बेटी भयो पर प्रतीक को प्रेम काका-काकीको मन लक कम होन लग्यो,अन वय प्रतीक ला दुरावन लग्या. एक दिन असो आयो का वय प्रतीक ला ठेवन नामंजूर भय गया. आजा-आजी भी का करता वयच त काका-काकी को भरोसा पर रवत होता. उनकी असी परिस्थिति नवती का वय खुद कमायके आपरो नाती ला पाल सीकत. एक दिन प्रतीक ला लेयके उनको घर मा मोठो तांडव उभो भयो. अन वोला घर को बहार निकाल देईन. तब वु तेरा साल को होतो, असोमा प्रतीक का करतो पर नहान पनच वोका माय-बाप वोला छोड़के चली गया होता येको कारन वोला बहुत सी समझ आय गयी होती. का खुदला कसो संभालन. वोन दुःख को घड़ी मा वोको जवर ना घर होतो ना परिवार होतो. येको कारन वोको काही साल को पढ़ाई को भी नुकसान भयो.
        प्रतीक एक अच्छो गुन वालो अन अच्छी सोच वालो टूरा होतो. बहुत कम उमरमाच वोन  आजूबाजू को लोकइनमा इज्जत बनाईतीस, येको वोला अच्छो फायदा भयो. वोन आपरो दोस्त इनको परिवार ला पैसा मांगिस अन नागपुर आयो. अन काम साथी काहीं दिन भटकत रयो, कही होटल मा त कही चाय को दुकान मा. कोनिको काही थोडसो काम कर देत नहान टूरा समाजके वोला पैसा देय देती. असो करता-करता वोका दुय महिना नीकल गया. एक दिन एक मानुस वोला भेेट्यो जो महीना भर पासुन प्रतीक ला देकत होतो. वोन प्रतीक ला आपरो जवर बुलायीस अन प्रतीक ला वोको बार मा पुचिस त प्रतीक न आपरी पुरी हकीकत सांगीस. वोन मानुस ला प्रतीक की हकीकत आयकके अन प्रतीक ला देखके दया आयी, वोन प्रतीक ला आपरो घर लीजायीस. वु मानुस अच्छो अधिकारी पोस्ट पर होतो, वोन प्रतीक ला संभालन को जिम्मा उठाईस अन प्रतीक को एक इस्कुल मा नाव दाखिल कराईस. वू मानूस अन वोका घरवाला प्रतीक ला आपरो संग ठेवन लग्या. प्रतीक ला लग का आपुन भी काही करे पहिजे कयके सोला साल को उमर मा पेपर बाटन को काम अन पढ़ाई कर. प्रतीक तसो पढ़ाई मा हुशार होतोच अन समाजदार भी. सतरा साल को उमरमा वोन दसवी की परीक्षा पास करीस, वोन परीक्षा मा वोला ८०% भेट्या. वोन परिवार संग रयके प्रतीक को मन मा एक अच्छी भावना जागृत भयी अन वोन समाज सेवा करन की मन मा ठान लेइस. येकोसाथी अधिकारीन भी वोला साथ देईस. प्रतीक ला कोनी भी दुःखी दिसत वू वोला मदत करत होतो. वोला दुःख की एतरी जानीव होती की दूसरो को दुःख वू पटकन समज जात होतो. वोकी समाज सेवा की भावना अज भी वोको मन मा जागृत से,अन अज वू एक समाज सेवक से. अज एक किराया को घर मा रवसे. अन वू आपरो मा लकच कोनी एक से. 
    येकोमालक यो बोध निकलसे- 
१.  आपरो अन परायो की जानीव दुःख को घडीमाच होसे (दुःख मा आपरा भी पराया होसेत अन पराया भी आपरा)
२. अच्छा संस्कार मानुस ला सही दिशा देखावसे.
       - कु.कल्याणी पटले
            दिघोरी, नागपुर

No comments:

Post a Comment

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...