आमरो पोवार समाज की संस्कृती सब समाज लक अलग से.पोवार की चलीरिती, संस्कृती, परंपरा हर भाग मा पोवार समाज को अलगच अंदाज से.पोवारी संस्कृती मा अापरो लक नहान रहो का मोठो हर कोनी को मान सम्मान करीयो जासे. आपरो सुसरो, भासरो इनको सामने सेव डाकनो, उनको आदर करनो असी आपरो पोवार की संस्कृती से.
परंपरागत तरीका लक हर त्योहार मनायो जासे.पोवारी समाज मा पहिले पासुनच बिह्या का नेंग-दस्तुर सब समाज लक हटके सेती. सबदुन पहिले टुरा- टुरी इनला दुुई पक्ष का मोठा मानवाईक देखन ला जासेती मंग दुई पक्ष ला रिश्ता मंजुर रहयो त कुकू लगावनी/देठ खानी/फलदान होसे. बादमा दुई पक्ष का मोठा मानवाईक बसकर बिया की तारीक पक्की करसेती. बिया मा १२ डेरी को मांडो, जामुन की डगाल अन मोवई को झाड की लगुनडेर को बडो महत्व रवसे.
हरद को दिवस नवरदेव/नवरी ला हरद लगावन को पहिले मातामाय ला हरद चढावसेती. बिजोरो की बारात अावसे. बारात वापस गयो पर नवरदेव/नवरी ला काकन बांध्यो जासे, हर नेंग-दस्तुर का गाना गावसेती. काही आयी-माई माती खंदन जासेती न टोपली मा माती आन सेती. अहेर होसेत,नवरदेव/नवरीला हरद लगसे मंग उनको अांगपाय धोवायो जासे अन मंग नवरदेव/नवरला सजायो जासे। नवरदेव की बरात नीकल्यो पर धुर धराई होसे अन बरात रवाना होसे. नवरदेव की बरात नवरी को घर जायो पर भी बहुत सा दस्तुर होसेत. असा बहुत दस्तुर आपरो पोवारी संस्कृती मा होसेत. पहिले आपरो पोवार मा खासर की बरात जाती. बियाच नहीं त खेती किसानी भी परंपरागत तरीका लक करियो जासे.
आपरो समाज का लोक साहित्य, कलामा भी निपुन सेती. पड्यार पासुन दोरी बनायके डिजाइनदार खाट बिननो, परसा की छाल को बरू लक चराट बनावनो, बेरू को कमची लक टट्टा बनावनो असी बहुत सारी कला आपरो समाज को लोकइनमा पारंगत से. डंड्यार खेलनो, डरामा करनो, कुटनो घनी गाना गावनो, परा लगावाने घनी, धान काटनो घनी गाना गावनो असो भी कलाइनमा आपरी संस्कृती निपुन से.
तसोच आपरा पोवारी का त्योहार भी अलगच रव सेती. अखाड़ीला बुल्या भज्या बनावन को रिवाज से. पहीलो सनला आपली कुलदेवी माता-माय जवर पूजा कर सेती.
तसोच कानोबा, पोरा, नवरात्री मा नऊ दिवस बाडी की पुजा करनकी प्रथा से. आपरो समाजमा हर त्योहार मनावन को एक अलगच अंदाज से. आपरो समाज मा हर सन त्योहार मा सुवारी, सुकुडा अन बड़ा को भाजी को जादा महत्व से.असी से आपरी पोवारी संस्कृति.
कु. कल्याणी पटले
दिघोरी, नागपुर
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