_(पिता /बाबूजी :- रामकिशन, मोठो बेटा :- विवेक, मंजलो बेटा :- प्रेम, लहान बेटा :- विनोद सरपंच :- नरेशजी गौतम)_
विवेक :- "बाबूजी ! पंचायत जमा भयी, सरपंच साहेब आय गया, आता तरी हिस्सा बटवारा कर् देवो।"
सरपंच :- "काहे , रामकिशन भाऊ जब् एक मा रहेके निभनो संभव नाहाय त् औलाद ला बेगरा कर् देव । बेगरचार ( विभक्त) करनोच् ठीक रहे , रोज - रोज को खट - फ़ट ल् दूर?"
रामकिशन :- ठीक से...!
सरपंच :- आता सांगो, रामकिशन भाऊ, तुम्ही कोनतो बेटा जवर रव्हो?
विवेक :- अरे, एकोमा पुछन की का बात से? बाबूजी /पिताजी,च्यार महीना मोरो जवर रहेत, च्यार महीना
प्रेम (मंजलो भाई)जवर ,ना च्यार महीना *विनोद* (लहान भाई) जवर रहेत।
सरपंच :- चलो, तुम्हरो रव्हन को फैसला त् भय गयेव, आता जमीन जायदाद को भी लगेव हात कर् लेव बटवारा !
रामकिशन :- चुपचाप सबकी बात आयक कर एकदम चिल्लाय उठ्या..!
" कोनसो फैसला?"
आता मी करू फैसला, तुम्ही तिनही भाई (औलाद) मोरो घर ल् निकल जाव !!!!
च्यार महीना को पारी - पारी लक मोरो जवर रव्हो। ना बाकी को महीनाइनको इंतजाम तुम्ही खुद करो.....!
मी जायदाद को मालिक आव ।
( तिनही बेटा ना पंचायत रामकिशन जी को फैसला आयक कर(आश्चर्यचकित) तोंड देखत रहे गया,जसी काही नवीन बात भय गई....)
येला कसेत फैसला/निर्णय
टिप :- फैसला औलाद न् नही माय - बाप न् करे पाहिजे ।
धनराज भगत
आमगांव
15/06/2020
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