मोहतूर
उन्हारों मा झवरावसे पड़से गरमी की मार।
रोवसेखाकसे उतरसे ओको हिरवो सिंगार।।
हिरवी शालू जरसे खोबा वोला जागनजाग।
चातक सरिसी बाट देखसे सूर्य ओकसे आग।।
नहीं आव जबवरी मिरुग को पानी की धार।
धरतीपर सब सजीव को पानी से पालनहार।।
आईं आईं देखो मिरूग की पयली या फुहार ।
नाच उठ्या धरती आयेव निसर्ग को तारणहार।।
फुट्या नवंकुर धरती को रूप देखो हिरवोगार ।
मोहतुरसाती सजेव बखर किसान भयेव सार।।
धरीस धान, बीजबोहनी अना आरती कि थाल ।
दस कुडो की भरीस खार खुशिला नहीं ठिकान।
पानी बरसेव, सरेव पऱ्हा मिलेव वोला समाधान।
दिवारी आई सोनो सरीखो काटन आयेव धान ।।
मोहतूरकी आणीस चरू,डोकरीला खीरको मान।
काटिस धान भऱ्या पोता खुशिला वोको उधान ।।
करिस कडही नारेनपुडी मानिस धरतीको आभार।
नही हट मेहनतला किसान खरो जग को आधार।
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
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