उत्तर मा बसी से उत्तुंग हिमालय ,
दक्खिन मा हिन्द महासागर से
पूरब बसी सेत सात बहिनिया
पश्चिम सोमनाथ को मन्दिर से ।।
शून्य को खोज आमी करया
जग ला सभ्यता को पाठ पढ़ाया
सूरज , पृथ्वी , ग्रह अना चंदा को
सबले पयले आमी दूरी बताया ।।
से विलक्षण प्रतिभा, येने देश मा ।
अनेकता मा एकता को विचार से
बच्चा - बच्चा मा श्रीराम बसी से
माय ,बहिन ,बेटी मा देवी की बहार से ।।
राम ,किशन , बुध्द को यहां जनम भयो
विक्रम ,सिन्धु , भोज यहां राज करी सेत
विवेकानंद , राममोहन संगा मिलकन
सनातन धरम को परचार करी सेत ।।
रामायण अना ,गीता वैदिक ग्रंथ मा
सकल जीवन को सार भरयो से
चाणक्य अना विदुर की नीति मा
धरम , करम को व्यापार रचयो से ।।
धन्य - धन्य ओ ! मोरी भारत भूमि
निछावर करसू तोला , मोरो तन , मन
तोरी माटी को कण - कण सोन्नो से
तोला पायके धन्य भयो आमरो जीवन ।।
रचनाकार - पंकज टेम्भरे 'जुगनू'
परसवाड़ा , बालाघाट
सम्पर्क - ७५८३८६०२२७
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