मोहतुर
अज मी कविता को मोहतुर करेव
पोवारी भाषासाठी आत्मा अर्पण करेव
जन्म मिलेव पोवारी जातमा सुंदर मोला
पोवारी साहित्य साठी जरासी पेरणी करेव।।1।।
खार पेरके भय गयी से पोवारी की बढिया
जरासी नांगरणी,बखरणी करू कसु मी
धानला अंकुर आयो परा बांधीमा मंग
पोवारी को पऱ्हा एकसारखो लगाऊ कसु मी।।2।।
पोवारी की लहलहाती फसल आये समाजमा
खीलखीलाये,आनंदीत होये पोवारी जगमा
सोनोवानी सुंदर दिसे अना निरंतर रहे
पोवारी भाषा सबको मनमा अना तनमा।।3।।
मोहतुर सद गयी से आता पोवारी भाषा की
जनजनमा रूज गयी से जड आता पोवारीकी
समाज मा जरूरी से एकता,एकरूपता,लिखाण
तबच पाझर फुटे जगमा पोवारी साहित्यकी।।4।।
वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव
जि.गोंदिया
मो.नं.8669092260
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